हिंदी भाषा के मानकीकरण की दिशा में उठाए गए महत्त्वपूर्ण कदम By Avinash Ranjan Gupta
हिंदी भाषा के मानकीकरण की दिशा में उठाए गए महत्त्वपूर्ण कदम
1. नुक्ता के
संदर्भ में
राजा शिवप्रसाद ‘सितारे-हिन्द' ने क ख ग ज़ फ़ पाँच
अरबी-फारसी ध्वनियों के
लिए चिह्नों के नीचे नुक्ता लगाने का रिवाज आरंभ किया।इससे एक तो
हिंदी शब्दकोश का संवर्धन हुआ और नुक्ते के लग जाने के बाद शब्दों में समता होने
पर भी अर्थ अलग-अलग बने रहे।
2. खड़ी बोली की व्यावहारिकता
के संदर्भ में
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन' के जरिए खड़ी बोली को व्यावहारिक रूप प्रदान करने का
प्रयास किया और उनके इस प्रयास से ही आज हिंदी की खड़ी बोली में
अनेक रचनाएँ रची जा रही हैं।
3. खड़ी बोली को पद्य की भाषा बनाने के संदर्भ
में
अयोध्या प्रसाद खत्री ने प्रचलित हिंदी को 'ठेठ हिंदी की संज्ञा दी
और ठेठ हिंदी का प्रचार किया। उन्होंने खड़ी बोली को पद्य की भाषा बनाने के लिए
आंदोलन चलाया।
4.हिंदी भाषा के मानकीकरण में 'सरस्वती' पत्रिका
हिंदी भाषा के मानकीकरण की दृष्टि से द्विवेदी युग (1900-20)
सर्वाधिक महत्वपूर्ण
युग था। 'सरस्वती' पत्रिका के संपादक
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली के मानकीकरण का सवाल सक्रिय रूप से और एक
आंदोलन के रूप में उठाया। युग निर्माता द्विवेदीजी ने 'सरस्वती' पत्रिका के जरिए खड़ी बोली हिंदी के
प्रत्येक अंग को गढ़ने-संवारने का कार्य खुद तो बहुत लगन से किया ही, साथ ही अन्य
भाषा-साधकों को भी इस कार्य की ओर प्रवृत्त किया।
5. कामता प्रसाद गुरु
का ‘हिंदी व्याकरण'
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से कामता
प्रसाद गुरु ने हिंदी व्याकरण' के नाम से एक वृहद व्याकरण लिखा। इस
व्याकरण से हिंदी के मानकीकरण में अपर सफलता मिली और इसके साथ ही कामता प्रसाद गुरु
हिंदी व्याकरण के जनक के रूप में सदा के लिए अमर हो गए।
6. छायावादी युग व
छायावादोत्तर युग
छायावादी युग (1920-36) व छायावादोत्तर युग (1936 के बाद) में हिंदी के
मानकीकरण की दिशा में कोई आंदोलनात्मक प्रयास तो नहीं हुआ, परंतु
इस वाद में रचनाओं के बाहुल्य से भाषा का मानक रूप अपने-आप स्पष्ट होता चला गया।
7. स्वतंत्रता प्राप्ति के
बाद
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद (1947 के बाद) हिंदी के
मानकीकरण पर नये सिरे से विचार-विमर्श शुरू हुआ क्योंकि हिंदी भाषा
संविधान ने इसे राजभाषा
के पद पर प्रतिष्ठित किया जिससे हिंदी पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व आ पड़ा। इस दिशा
में दो संस्थाओं का विशेष योगदान रहा -इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के
माध्यम से भारतीय हिंदी परिषद्' का तथा शिक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय केंद्रीय
हिंदी निदेशालय का।
8. धारवाहिकों और फिल्मों का
भारत की अधिकांश जनता हिंदी बोल, लिख और समझ पाती है इस दृष्टि से हिंदी व्यापार की भाषा भी बन गई और
दुनिया में सबसे ज़्यादा फिल्म निर्माण करने वाला भारत हिंदी को फिल्मों और
धारावाहिकों के माध्यम से भारत के भौगोलिक सीमाओं के परे ले गया। इस दृष्टि से भी हिंदी
का मानकीकरण हुआ।
9. इलाहाबाद विश्वविद्यालय का योगदान
भाषा के सर्वांगीण मानकीकरण का प्रश्न सबसे पहले 1950 में इलाहाबाद
विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने ही उठाया। डॉ० धीरेन्द्र वर्मा की अध्यक्षता में
एक समिति गठित की गई जिसमें डॉ० हरदेव बाहरी, डॉ० ब्रजेश्वर शर्मा, डॉ० माता प्रसाद गुप्त
आदि सदस्य थे। धीरेन्द्र वर्मा, देवनागरी लिपि चिह्नों में एकरूपता', हरदेव बाहरी ने 'वर्ण
विन्यास की समस्या,' ब्रजेश्वर शर्मा ने 'हिंदी व्याकरण' तथा माता प्रसाद गुप्त
ने 'हिंदी शब्द-भंडार का
स्थिरीकरण' विषय पर अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत किए।
10. केंद्रीय हिंदी निदेशालय
केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने लिपि मानकीकरण पर अधिक
ध्यान दिया और 'देवनागरी लिपि तथा हिंदी
वर्तनी का मानकीकरण' (1983 ई०) का प्रकाशन किया।
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