राष्ट्रीय एकता में हिंदी का महत्त्व, अविनाश रांजन गुप्ता


राष्ट्रीय एकता में हिंदी का महत्त्व

हिंदी है हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा।”
                                                                                                इकबाल
          इस वाक्य से यह साबित हो जाता है कि हिंदी किसी जातिविशेष की भाषा न होकर सर्वसामान्य की भाषा है।  1947 से पहले अगर हिंदी की स्थिति पर विचार करें तो ज्ञात होगा कि हिंदी स्वतंत्रता संग्राम की भी भाषा थी।  पंजाब के भगत सिंह हो या उधम सिंह, महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक,  दक्षिण के सी. राजागोपालचारी या मोटूरी सत्यनारायण, बंगाल के नेताजी सुभाष चंद्र बोस हों या राजा राममोहन रायगुजरात के महात्मा गांधी हों या सरदार वल्लभ भाई पटेल सभी ने अपनी प्रांतीय भाषाओं से ऊपर उठकर हिंदी को गले लगाया और स्वतंत्रता संग्राम की भाषा बनाई। नतीजा यह हुआ कि भाषाई भिन्नताओं के बावजूद हिंदी अखंड आत्म-भाव के कारण सभी की चहेती हो गई और स्वतंत्रता का चिर -अपेक्षित सपना सच हुआ।  
          खड़ी बोली में जिन्होंने सबसे पहले कविता लिखी वे थे- आमिर खुसरो। मुस्लिम होने के बावजूद आमिर खुसरो का हिंदी प्रेम यह प्रमाणित करता है कि हिंदी आज की ही नहीं बल्कि बहुत पहले से ही एक ऐसी भाषा थी जिसमें राष्ट्रीय एकता के बीज दबे हुए थे।
          आज भी भारतीय रोज़गार के कारण दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं और जब भी वे मिलते हैं तो उस स्थान को हिंदी भाषा का प्रयोग करके हिंदुस्तान बना देते हैं। उस समय हिन्दी राष्ट्रीय एकता से परे अंतर्राष्ट्रीय एकता की श्रेणी में जा खड़ी होती है।  
          राष्ट्रीय एकता में हिंदी का महत्त्व सराहनीय है क्योंकि भारत में हिंदी के जानकार अन्य किसी भाषा के जानकार की तुलना में कहीं अधिक है इसके अलावा विदेशों में भी हिंदी भाषा की माँग बहुत है क्योंकि हिंदी भाषा अपनी सरलता, शुद्धता और सरसता के कारण सभी लोगों के हृदयों पर छा जाती है। इसी कारण से  हंगरी की मारिया नैन्जैशी और बेल्जियम के फादर कामिल बुल्के हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपना सर्वस्व जीवन लगा दिया।          
          21 जून के दिन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, रोग से नीरोग की तरफ ही नहीं अपितु हिन्दी भाषा के विविध संस्कारों से भी हमारा परिचय करवाता है।  इसके अतिरिक्त भारत सरकार के संरक्षण में 11 बार आयोजित किया जा चुका विश्व हिंदी सम्मेलन भी हिंदी के सशक्तीकरण के लिए बहुत ही उम्दा कदम है।  मॉरिशस में संपन्न हुए 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में वहाँ के मार्गदर्शक मंत्री अनिरूद्ध जगन्नाथ ने कहा कि भारत माँ और मारिशस पुत्र है और पुत्र मारिशस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी भाषा को पहचान दिलाने के लिए जी जान लगाकार अपना कर्तव्य निभाएगा।
          इसके साथ ही साथ हिंदी फिल्में और धारावाहिकों न केवल भारत में बल्कि भारत की सीमाओं को पार करते हुए विश्व के 116 देशों में अपने प्रभुत्व का विगुल बजाया है।  हिंदी साहित्य रचना अपने काव्य सौष्ठव के लिए और अपने रचनाओं में छिपे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक भावों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।  
          हिंदी भाषा, भाषा न रहकर एक संस्कार बन चुकी है क्योंकि आजकल हिंदी का प्रयोग हमें प्रायः सभी क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है।  फेसबुक हो या ट्विटर, व्हाट्सएप हो या कोई भी सोशल नेटवर्किंग साइट उन सभी में हिंदी का प्रयोग धड़ल्ले से होता हुआ दिखता है क्यों क्योंकि हिंदी अपने आप में एक अद्भुत आत्मीयता का गुण छुपाए होती है जो किसी अन्य भाषाओं में उतना नहीं देखने को मिलता और जहाँ आत्मीयता की भावना होती है वही राष्ट्रीयता की भावना भी प्रस्फुटित होती है।
          आज देखिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जो गुजराती हैं बावजूद इसके गुजराती का प्रयोग वह उतना नहीं करते जितना हिंदी का प्रयोग करते हैं क्योंकि उन्हें इस बात का भान हो चुका है कि हिंदी ही एकमात्र भाषा है जो पूरे भारत और विश्व को एक सूत्र में बाँध रखने की क्षमता अपने अंदर रखती है।
          दिवंगता विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने भी यूएनओ में हिंदी में अपना भाषण देकर हिंदी को विश्व पटल पर रखने का महान कार्य किया और उन्होंने यह साबित कर दिया कि हिंदी भाषा में एकता की भावना बड़ी प्रबल है इनसे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी यूएनओ में हिंदी में भाषण दिया था और हिंदी को विश्व पटल पर अंकित किया था।  
अविनाश रंजन गुप्ता


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