विशिष्ट भाषा Special Language
विशिष्ट भाषा Special Language
विशिष्ट भाषा क्या है?
समाज के विशिष्ट लोगों की अपनी ही
एक भाषा होती है, जिसे विशिष्ट भाषा
कहा जाता है। विभिन्न व्यवसायों में काम करने वाले व्यक्ति कुछ ऐसे शब्दों का
व्यवहार करते हैं जो उनके अपने व्यवसाय की भाषा में तो सामान्य-व्यवहृत माने जा
सकते हैं परन्तु अन्यत्र नहीं। इसीलिए वह भाषा उन्हीं विशिष्ट लोगों तक सीमित रह
जाती है, जैसे-’ओ० एस०’ ने जब
‘एस० ओ०’ को रिपोर्ट की। ‘ओ० एस०’ और ‘एस०ओ०’ से अभिप्राय ‘ऑफ़िस सुपरिन्टेण्डेण्ट’ और ‘सेक्शन आफिसर’ से होता है, जिसे केवल उसी कार्यालय में काम करने वाले या उनके निकट संपर्क
में रहने वाले व्यक्ति ही समझते हैं।
विशिष्ट भाषा और सामान्य भाषा में अंतर
विशिष्ट भाषा का और सामान्य भाषा
में अंतर अधिकतर केवल विशिष्ट शब्दावली तक ही सीमित रहता है। विशिष्ट भाषा में
सामान्य भाषा की तुलना में कहीं अधिक शब्द होते हैं और सामान्य लोग न ही उन शब्दों
का प्रयोग करते हैं और न ही उन शब्दों के बारे में जानते हैं।
विशिष्ट भाषा के सामान्य क्षेत्र कौन-से हैं?
गाँव के पंडित की भाषा पंडिताऊ
होती है, काजी की भाषा उर्दू मिश्रित, पढ़े-लिखे
लोगों की भाषा में अनायास ही अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग हो जाता है। उसी प्रकार विद्यार्थियों
की भाषा या छात्रालय की भाषा, व्यापारियों की भाषा, सोने-चाँदी की दलाली करनेवालों की भाषा, कहारों की भाषा, धार्मिक संघों की भाषा, राजनयिक भाषा, राजनीतिक संस्थाओं की भाषा तथा
साहित्यिक गोष्ठियों की भाषा इसी प्रकार, बढ़ई,
लुहार, धोबी, दर्जी की भाषा में व्यावसायिक
शब्दावली का प्रयोग होता है। कबीर की भाषा में जुलाहे की भाषा स्पष्ट हो जाती है- ‘झीनी-झीनी
बीनी चदरिया।’ कचहरी की भाषा अलग ही होती है। किसान और प्राध्यापक की भाषा का अंतर
भी इसी रूप में व्याख्येय है।
विशिष्ट भाषा में उच्चारण संबंधी अंतर
विशिष्ट भाषा में उच्चारण संबंधी
अंतर भी दिखाई देता है, जैसे – समरसिबल पंप आप बोलचाल में बहुत
प्रचलित है जबकि होता है सबमर्सिबल पंप।
कौन से क्षेत्र की शब्दावली बहुत होती है?
विज्ञान के क्षेत्र में डॉक्टरी
पेशे में और विधि और कानून के क्षेत्र से जुड़े वकालत के क्षेत्र में शब्दावली बहुत होती है।
मानक शब्दों के विकृत रूप से विशिष्ट भाषा
कभी कभी जानबूझ कर भाषा को बिगाड़
कर बोला जाता है और वह विकृत रूप कुछ लोगों में इतना प्रचलित हो जाता है कि वह भी
उस समुदाय का सामान्य व्यवहृत रूप बन जाता है। इसी को विकृत बोली (slang) कहा जाता है। समोसा
को समोस, पेटी को पेट, प्रसाद को परशादाजी, रोटी को रोटा जी कहना इसी प्रकार
के प्रयोग हैं। कभी कभी प्यार में शब्दों को विकृत कर दिया जाता है। इसी लिये
स्वीट (sweet) से स्वीटी (sweetie) शब्द बन जाता है और
बहू का बहुरिया रूप इसी विकार के परिणामस्वरूप ही हैं। हिंदी में सुनाओ राजा या
पंजाबी में सुणाओ सोहणेओ या बादशाहो इसी प्रकार के विकृत प्रयोग हैं।
विशिष्ट भाषा पर भाषाविदों की राय
महादेव एल० आप्टे ने प्रतिपादित
किया है कि ‘मराठी में मराठी ब्राह्मणों की मराठी एवं गैर ब्राह्मणों की
मराठी में अंतर है, किंतु नगरों में रहने वाले शिक्षित गैर
ब्राह्मण भी मानक मराठी का प्रयोग करते हैं।’
प्रबोधचंद्र बेचरदास पंडित ने यह
निष्कर्ष निकाला है कि प्राय: शिक्षा सामाजिक प्रतिष्ठा का कारण होती है। शिक्षित व्यक्ति
के भाषिक रूप से अशिक्षित व्यक्ति के भाषिक रूपों से भिन्न होते हैं।
विशिष्ट शब्द अर्थात् Jargon
ऐसे शब्द जो विशेष व्यवसाय, स्तर, वर्ग आदि के लोगोंको ज्ञात हों किंतु सामान्य लोग जिन्हें न समझ सकें उन्हें
विशिष्ट शब्द अर्थात् Jargon कहते हैं। कुछ लोग ऐसे शब्दों का
प्रयोग अपना वर्चस्व स्थापित करने या लोगों का ध्यान अपनी ओर केन्द्रित करने के
उद्देश्य से करते हैं और ऐसे लोगों के लिए यह कहा जाता है कि यह व्यक्ति jargon
फैला रहा है।
विशिष्ट भाषा का अन्य रूप -1
दृष्टिबाधितों के लुईस ब्रेल
द्वारा निकाली गई लिपि जिसे ब्रेल लिपि कहते हैं ये भी विशिष्ट भाषा का ही एक उदाहरण है।
विशिष्ट भाषा का अन्य रूप - 2
प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर ऐसे
सवाल पूछे जाते हैं – जैसे
एक विशिष्ट कोड भाषा में VERBAL को ZIVFEP लिखा जाता है इस कोड
भाषा में REASONING को किस प्रकार लिखा
जाएगा?
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