सीखा है मैंने यही कि
सीखा है मैंने यही कि
सीखा है
मैंने यही कि,
व्यक्ति
शाश्वत नहीं,
व्यक्तित्व
शाश्वत है,
जीवन शाश्वत
नहीं,
जीवनी
शाश्वत है।
लोगों ने कहा है
मुझसे,
जमाने के हिसाब
से चलो,
सीखा है मैंने
यही कि,
छल शाश्वत नहीं,
फल शाश्वत है।
शिक्षक कर्म
में लीन हूँ,
नैतिक धर्म
के अधीन हूँ,
सीखा है
मैंने यही कि,
नकल शाश्वत
नहीं,
अकल शाश्वत
है।
तरह-तरह के
आविष्कारों ने,
दिया है अपराधों
को बढ़ावा,
सीखा है मैंने
यही कि,
मज़ा शाश्वत नहीं,
आनंद शाश्वत है।
तुम
अपने-अपनों के बारे में सोचते हो,
इसलिए
दूसरों का बुरा करते हो,
मैंने तो
यही सीखा है कि
विलास
शाश्वत नहीं,
विचार
शाश्वत है।
अविनाश रंजन गुप्ता
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