Baal Kavita on मातृहीन
मातृहीन
मेरी माता ! मेरी
माता !
कहाँ गई तू मेरी
माता ?
आँखों के न सूखते आँसू
।
तेरे बिन है रहा न
जाता ।।
थका खोज, कुछ पता न पाता ।
बहुत-बहुत हूँ
मैं घबड़ाता ॥
कैसे छोड़ गई तू
अपने ?
प्यारे शिशु को
रोता गाता ।।
मैं था लाल खिलौना
तेरा।
छोटा-सा मृग छौना
तेरा ॥
अब तू पास नहीं है
तो माँ !
सूना है सिंहासन
मेरा ।
किसके बल पर अब अकड़ूँ
मैं ।
किसकी उँगली अब
पकड़ूँ में।
और सबेरे उठ कर
किसके।
पैरों पर धर शीश
पड़ूँ मैं॥
जड़ से जीवन का तरु टूटा ।
सारा हँसना गाना छूटा ।।
लूटा तेरा प्राण काल ने।
क्योंकि भाग्य था मेरा फूटा ।।
किसके ढिग हाँ ! जाऊँ अब मैं ?
माँ, कह किसे बुलाऊ
अब मै ?
नहीं बाताता है कोई भी।
तुझको कैसे पाऊँ अब मैं ?
सेवा तेरी कर न सका मैं ।
पीड़ा तेरी हर न सका मैं ॥
कैसे तुझको पा सकता हूँ?
जब तेरे संग मर न सका मैं ॥
हाँ जो मेरी मातृ मही है।
जिसमें तू ने शान्ति लही है।
सेवा कर उसकी सकता हूँ।
आशा बाकी एक यही है ।
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