सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश
के बस्ती ज़िले में सन् 1927 को हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविघालय से
उच्चशिक्षा ग्रहण की। आरंभ में उन्हें आजीविका हेतु काफ़ी संघर्ष करना पड़ा, बाद में
दिनमान के उपसंपादक एवं चर्चित बाल पत्रिका पराग के संपादक बने। सन् 1983 में उनका
आकस्मिक निधन हो गया।
काठ की घंटियाँ, बाँस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, जंगल का
दर्द, खूँटियों पर
टँगे लोग उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। नई कविता के प्रमुख कवि सर्वेश्वर दयाल
सक्सेना ने उपन्यास, नाटक, कहानी, निबंध एवं प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य भी
लिखा है। दिनमान में प्रकाशित चरचे और चरखे स्तंभ के लिए सर्वेश्वर बहुत चर्चित
रहे हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सर्वेश्वर के काव्य में ग्रामीण संवेदना के
साथ शहरी मध्यवर्गीय जीवनबोध भी व्यक्त हुआ है। यह बोध उनके कथ्य में ही नहीं भाषा
में भी दिखाई देता है। सर्वेश्वर की भाषा सहज एवं लोक की महक लिए हुए है।
संकलित कविता में कवि ने मेघों के आने की
तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि (दामाद) से की है। ग्रामीण संस्कृति में दामाद के आने
पर उल्लास का जो वातावरण बनता है, मेघों के आने का सजीव वर्णन करते हुए कवि ने
उसी उल्लास को दिखाया है।
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