चंद्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले
चंद्रकांत देवताले का जन्म सन् 1936 में गाँव जौलखेड़ा, ज़िला बैतूल, मध्य प्रदेश में हुआ। उच्च शिक्षा इंदौर से हुई तथा पीएच.डी. सागर विश्वविघालय, सागर से। साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर देवताले जी उच्च शिक्षा में अध्यापन कार्य से संबद्ध रहे हैं।
देवताले जी की प्रमुख कृतियाँ हैं हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि। देवताले जी अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए-माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान। उनकी कविताओं के अनुवाद प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में और कई विदेशी भाषाओं में हुए हैं।
देवताले की कविता की जड़ें गाँवकस्बों और निम्न मध्यवर्ग के जीवन में हैं। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि में जहाँ व्यवस्था की कुरूपता के खिलाफ़ गुस्सा है, वहीं मानवीय प्रेमभाव भी है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहता है। कविता की भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और एक विरल संगीतात्मकता दिखाई देती है।

संकलित कविता में कवि सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर इशारा करते हुए कहना चाहता है कि जीवनविरोधी ताकतें चारों तरफ़ फैलती जा रही हैं। जीवन के दुखदर्द के बीच जीती माँ अपशकुन के रूप में जिस भय की चर्चा करती थी, अब वह सिर्फ़ दक्षिण दिशा में ही नहीं है, सर्वव्यापक है। सभी तरफ फैलते विध्वंस, हिंसा और मृत्यु के चिह्नों की ओर इंगित करके कवि इस चुनौती के सामने खड़ा होने का मौन आह्वान करता है।

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