दंत्य ‘स’ Dantya Sa By Avinash Ranjan Gupta
दंत्य
‘स’
‘स’ देवनागरी वर्णमाला का बत्तीसवाँ व्यंजन वर्ण जो
भाषा विज्ञान और व्याकरण की दृष्टि से ऊष्म, दंत्य, अघोष और महाप्राण है। 'स' के
उच्चारण में जिह्वा दाँतों का स्पर्श करती हैं इसलिए इसे दंत्य वर्ण कहते हैं।
हिन्दी
शब्दकोश में ‘प’ व्यंजन वर्ण के बाद
‘स’व्यंजन वर्ण से ही सबसे ज़्यादा शब्द
बनते हैं।
‘स’ के आधे रूप से भी शब्दों की शुरुआत होती है।
जैसे
- स्याही, स्कूल, स्त्री
‘स’ में अनुस्वार और अनुनासिक दोनों का प्रयोग होता
है, जैसे- साँवला, संत, सँवारना, वसंत
संस्कृत
में कुछ ऐसे भी शब्द हैं जिनमें ‘श’ का
प्रयोग तद्भव में ‘स’ में बदल जाता है
जैसे –
दश
– दस , शाक – साग , शूकर – सूअर,
श्वशुर – ससुर
'श' और 'स' के अशुद्ध उच्चारण से गलत शब्द बन जाते हैं और उनका अर्थ ही बदल जाता है।
अंश
(भाग)- अंस (कन्धा) । शकल (खण्ड)- सकल (सारा) । शर (बाण)- सर (तालाब) । शंकर (शिव
भगवान)- संकर (मिश्रितHybrid) । श्व (कुत्ता)- स्व
(अपना) । शान्त (धैर्ययुक्त)- सांत (स+अंत अंतसहित)।शील – आचरण, सील – एक प्रकार की मछली
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