Chapter – 10 दशमः पाठः जटायोः शौर्यम् Dasham Paatha: Jatayu Shouryam NCERT Shemushi Class IX (Subject Code-122)
दशमः पाठः
जटायोः शौर्यम्
प्रस्तुत पाठ्यांश आदिकवि वाल्मीकि—प्रणीत
रामायणम् के अरण्यकाण्ड से उद्धृत किया गया है जिसमें जटायु और रावण के युद्ध का
वर्णन है। पंचवटी कानन में सीता का करुण विलाप सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु उनकी
रक्षा के लिए दौड़े। वे रावण को परदाराभिमर्शनरूप निन्घ एवं दुष्कर्म से विरत होने
के लिए कहते हैं। रावण की परिवर्तित
मनोवृत्ति को देख वे उस पर भयावह आक्रमण करते हैं। महाबली जटायु अपने तीखे नखों
तथा पञ्जों से रावण के शरीर में अनेक घाव कर देते हैं तथा पञ्जों के प्रहार से
उसके विशाल धनुष को खंडित कर देते हैं। टूटे धनुष, मारे गये अश्वों और सारथी वाला रावण विरथ
होकर पृथ्वी पर गिर पड़ता है। कुछ ही क्षणों बाद क्रोधांध रावण जटायु पर प्राणघातक प्रहार
करता है परंतु पक्षिश्रेष्ठ जटायु उससे अपना बचाव कर उस पर चञ्चु—प्रहार करते
हैं, उसके बायें
भाग की दशों भुजाओं को क्षत—विक्षत कर देते हैं।
सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता।
वनस्पतिगतं गृध्रं ददर्शायतलोचना ।।1।।
जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्।
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ।।2।।
तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः
।।3।।
ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः।
वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम्
।।4।।
निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्।
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ।।5।।
वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि ।।6।।
तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।
चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः ।।7।।
ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्।
चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जास्य महद्धनुः ।।8।।
स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
अङकेनादाय वैदेहीं पपात भुवि रावणः ।।9।।
संपरिष्वज्य वैदेहीं वामेनाङनेक् रावणः।
तलेनाभिजघानाशु जटायुं क्रोधमूर्च्छितः
।।10।।
जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः।
वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ।।11।।
शब्दार्थाः
ह्रियमाणाम् नीयमानाम्
ले जाई जाती/अपहरण
की जाती हुई
राक्षसेन्द्रेण दानवपतिना
राक्षसों के राजा
द्वारा
परदाराभिमर्शनात् परस्त्रीस्पर्शात्
पराई स्त्री के स्पर्श
से
विगर्हयेत् निन्घात्
निन्दा करनी
चाहिए
धन्वी धनुर्धरः
धनुर्धर
कवची कवचधारी
कवच धारण किए हुए
शरी बाणधरः
बाण को लिए हुए
व्याजहार अकथयत्
कहा
निवर्तय वारणं
कुरु मना करो, रोको
व्यपाहरत् उत्खातवान्
उखाड़ दिया
वैदेहीम् सीताम्
सीता को
व्रणान् प्रहारजनितस्फोटान्
प्रहार (चोट) से होने वाले
घावों को
बभञ्ज भग्नं
कृतवान् तोड़ दिया
पतगेश्वरः जटायुः
जटायु
(पक्षिराज)
विधूय अपसार्य
दूर हटाकर
भग्नधन्वा भग्नः
धनुः यस्य सः टूटे हुए धनुष वाला
हताश्वः हताः
अश्वाः यस्य सः मारे गए घोड़ों वाला
आदाय गृहीत्वा
लेकर
अभिजघान हतवान्
मार डाला
आशु शीघ्रम्
शीघ्र ही
तुण्डेन मुखेन, चञ्च्वा चोंच के द्वारा
खगाधिपः पक्षिराजः
पक्षियों का राजा
अरिन्दमः
शत्रुदमनः, शत्रुनाशकः शत्रुओं
को नष्ट करने वाला
अभ्यासः
1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत—
(क) “जटायो! पश्य” इति का वदति?
(ख) जटायुः रावणं किं कथयति?
(ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उघतः अभवत्?
(घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज?
(ङ) हताश्वो हतसारथिः रावणः कुत्र अपतत्?
2. उदाहरणमनुसृत्य णिनि—प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत—
यथा— गुण + णिनि — गुणिन् (गुणी)
दान + णिनि — दानिन् (दानी)
(क) कवच + णिनि —
..............
(ख) शर + णिनि —
..............
(ग) कुशल + णिनि —
..............
(घ) धन + णिनि —
..............
(ङ) दण्ड + णिनि —
..............
3. रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि
पृथक्—पृथक् कृत्वा लिखत—
युवा, सशरः, वृद्धः, हताश्वः, महाबलः, पतगसत्तमः, भग्नधन्वा, महागृध्रः,
खगाधिपः, क्रोधमूर्च्छितः, पतगेश्वरः, सरथः, कवची, शरी
यथा—
रावणः जटायुः
युवा वृद्धः
...................... ......................
...................... ......................
...................... ......................
...................... ......................
...................... ......................
...................... ......................
4. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत—
यथा— च + आदाय = चादाय
(क) हत + अश्वः = ..............
(ख) तुण्डेन + अस्य = ..............
(ग) .............. + .............. = बभञ्जास्य
(घ) .............. + .............. = अङकेनादाय
(ङ) .............. + .............. = खगाधिपः
5. ‘क’ स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः ‘ख’ स्तम्भे
लिखिताः। तान् यथासमक्षं योजयत—
क ख
कवची अपतत्
आशु पक्षिश्रेष्ठः
विरथः पृथिव्याम्
पपात कवचधारी
भुवि शीघ्रम्
पतगसत्तमः रथविहीनः
6. अधोलिखितानां पदानां/विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु
पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत—
मन्दम्, पुण्यकर्मणा, हसन्ती, अनार्य, अनतिक्रम्य,पद्राय,
देवेन्द्रेण, प्रशंसेत्, दक्षिणेन, युवा
पदानि विलोमशब्दाः
(क) विलपन्ती .................
(ख) आर्य .................
(ग) राक्षसेन्द्रेण .................
(घ) पापकर्मणा .................
(ङ) क्षिप्रम् .................
(च) विगर्हयेत् .................
(छ) वृद्धः .................
(ज) आदाय .................
(झ) वामेन .................
(ञ) अतिक्रम्य .................
7. (क) अधोलिखितानि विशेषणपदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि
रचयत—
(i) शुभाम् .................
(ii) हतसारथिः .................
(iii) कवची .................
(iv) खगाधिपः .................
(v) वामेन .................
(ख) उदाहरणमनुसृत्य समस्तं पदं रचयत—
यथा— त्रयाणां लोकानां समाहारः — त्रिलोकी
(i) पञ्चानां वटानां समाहारः —
........................
(ii) सप्तानां पदानां समाहारः —
........................
(iii) अष्टानां भुजानां समाहारः —
........................
(iv) चतुर्णां मुखानां समाहारः —
........................
योग्यताविस्तारः
(क) कवि परिचय
महर्षि वाल्मीकि आदिकाव्य रामायण के रचयिता हैं
। कहा जाता है कि वाल्मीकि का हृदय, एक व्याध द्वारा क्रीडारत क्रौञ्चयुगल
(पक्षियों के जोड़े) में से एक के मार दिये जाने पर उसकी सहचरी के विलाप को सुनकर
द्रवित हो गया तथा उनके मुख से शाप के रूप में जो वाणी निकली वह श्लोक के रूप में
थी। वही श्लोक लौकिक संस्कृत का आदिश्लोक माना जाता है—
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्।।
(ख) भाव विस्तार
जटायु—सूर्य के सारथी अरुण के दो पुत्र थे—सम्पाती और
जटायु। जटायु पञ्चवटी वन के पक्षियों का राजा था जहाँ अपने पराक्रम एवं बुद्धिकौशल
से शासन करता था। पञ्चवटी में रावण द्वारा अपहरण की गयी सीता के विलाप को सुनकर
जटायु ने सीता की रक्षा के लिए रावण के साथ युद्ध किया और वीरगति पाई। इस प्रकार
राज—धर्म की
रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले जटायु को भारतीय संस्कृति का महान्
नायक माना जाता है।
(ग) सीता विषयक सूचना देते हुए जटायु ने राम से जो वचन कहे
वे इस प्रकार हैं—
यामोषधीमिवायुष्मन्नन्वेषसि महावने।
सा च देवी मम प्राणाः रावणेनोभयं हृतम्।।
भाषिकविस्तारः
(घ) वाक्य प्रयोग
गिरम् — छात्रः मधुरां गिरम् उवाच।
पतगेश्वरः — पक्षिराजः जटायुः पतगेश्वरः अपि कथ्यते।
शरी — शरी रावणः निःशस्त्रेण जटायुना आक्रान्तः।
विधूय — वीरः शत्रुप्रहारान् विधूय अग्रे अगच्छत्।
व्रणान् — चिकित्सकः औषधेन व्रणान् विरोपितान् अकरोत्।
पपात — वृक्षः कुठारेण छिन्नः सन् भूमौ पपात।
तुण्डेन — शुकाः तुण्डेन तण्डुलान् खादन्ति।
व्यपाहरत् — जटायुः रावणस्य बाहून् व्यपाहरत्।
आशु — स्वकार्यम् आशु सम्पादय।
अभिजघान — रामः वने अनेकान् राक्षसान् अभिजघान।
(ङ) स्त्रीप्रत्यय—
टाप् प्रत्यय—करुणा, दुःखिता, शुभा, निम्ना, रक्षणीया
ङीप् प्रत्यय—विलपन्ती, यशस्विनी, वैदेही, कमलपत्राक्षी
ति प्रत्यय—युवतिः
पुल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग पद निर्माण में टाप्—ङीप्—ति प्रत्यय
प्रयुक्त होते हैं। टाप् प्रत्यय का ‘आ’ तथा ङीप् प्रत्यय का ‘ई’ शेष रहता
है।
यथा—
मूषक + टाप् = मूषिका
बालक + टाप् = बालिका
अश्व + टाप् = अश्वा
वत्स + टाप् = वत्सा
हसन् + ङीप् = हसन्ती
मानुषः + ङीप् = मानुषी
मानिन् + ङीप् = मानिनी
राजन् + ङीप् = राज्ञी
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