ज़्यादा माँगिए Zyada Mangiye By Avinash Ranjan Gupta


ज़्यादा माँगिए
एक प्रसिद्ध गीत है, “थोड़ा है, थोड़े की ज़रूरत है।” एक प्रार्थना है, “दया करो माँ दया करो।”, एक विनती है, “बस दाल रोटी चल जाए।” एक ख्वाइश है, “इतना-सा ही चाहिए।” एक ख्वाब है, “बस इतना-सा ख्वाब है।” और कुछ प्रतिदिन के वाक्य हैं, “इतना काफी है”, “ज़्यादा नहीं बस इतना ही।”, “मुझे ज़्यादा की आरज़ू नहीं है।”, “ऊपरवाला बस इतना ही दे दे।” ऐसे वाक्यों के विविध रूप हमारे दिलो-दीमाग में इस तरह बिठा दिए गए हैं कि हम ज़्यादा माँगने से ही डरने लगे हैं और शायद इसी का परिणाम है कि हममें से अधिकतर लोग अभावों में ही जीवन बिताते हैं। आप एक बार सोच कर देखें कि आप माँग किससे रहे हैं, उस ऊपरवाले से जिसने इतना बड़ा ब्रह्मांड बनाया, इतने सारे जीव-जन्तु बनाए, आकाशगंगा, सूर्य, नक्षत्र, तारे बनाए। उसके पास तो अथाह है और उससे जितना भी ले लें उनके पास कभी भी रिक्तता नहीं होगी। तो फिर आप ज़्यादा माँगिए और आपके पास ज़्यादा होगा तभी आप दूसरों की मदद कर पाएँगे और इसमें एक बड़ा फायदा यह है कि अगर आपकी माँगी हुई चीज़ बहुत ज़्यादा हुई तो जब तक आपको वह चीज़ न मिल जाए ऊपर वाला आपकी साँसें बढ़ा देगा क्योंकि ऊपरवाले के घर में देर हा अँधेर नहीं।   

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