Chapter -2 Joojh – Aanad Yadav जूझ आनंद यादव Question Answers
अभ्यास
1. ‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या
यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
2. स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
3. श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित
करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।
4.
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन
के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
5.
आपके खयाल से पढ़ाई—लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था
या लेखक के पिता का? तर्क
सहित उत्तर दें।
6.
दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक
और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का
घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
1.
पाठ का शीर्षक किसी भी रचना के मुख्य भाव को
व्यक्त करता है। 'जूझ' का अर्थ है - संघर्ष। इसमें कथानायक आनंद ने
पाठशाला जाने के लिए संघर्ष किया।
आनंद के पिता ने उसे स्कूल
जाने से मना कर दिया। लेकिन पढ़ने की तीव्र इच्छा ने उसे जीवन का एक उद्देश्य दे
दिया। उसने विद्यालय जाने के लिए पिता की जो शर्तें मानी थी उनका पालन किया। वह
विद्यालय जाने से पहले बस्ता लेकर खेतों में पानी देता। वह ढोर चराने भी जाता।
उसके पिता ने उसका पाठशाला जाना बंद करवा दिया था किंतु उसने हिम्मत नहीं हारी, पूरे आत्मविश्वास के साथ योजनाबद्ध तरीके से आगे
बढ़ा और सफल हुआ। आनंदा ने मास्टर सौंदलगेकर से प्रभावित होकर काव्य में रुचि लेना
प्रारम्भ किया। इससे उसमें पढ़ने की लालसा, वचनबद्धता, आत्मविश्वासी एवं कर्मठता
तथा कविता के प्रति झुकाव आदि चारित्रिक विशेषताएँ देखने मिलती है।
2.
मराठी के अध्यापक सौंदलगेकर कविता के अच्छे
रसिक व मर्मज्ञ थे। वे कक्षा में सस्वर कविता-पाठ कराते थे तथा लय, छंद गति,
आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे। उनसे प्रेरित होकर लेखक कुछ तुकबंदी करने लगा।
उन्हें यह ज्ञान हुआ कि वे अपने आस-पास के दृश्यों पर कविता बना सकते है। धीरे-धीरे उनमें कविता रचने का आत्मविश्वास बढ़ने
लगा।
3.
मास्टर सौंदलगेकर कुशल अध्यापक, मराठी के ज्ञाता व कवि थे। सुरीले ढंग से स्वयं
की व दूसरों की कविताएँ गाते थे। पुरानी-नयी मराठी कविताओं के साथ-साथ उन्हें अनेक अंग्रेजी कविताएँ कंठस्थ थीं।
पहले वे एकाध गाकर सुनाते थे - फिर
बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का
भाव ग्रहण कराते। आनंद को कविता या तुकबन्दी लिखने के प्रारम्भिक काल में उन्होंने
उसका मार्गदर्शन व सुधार किया, उसका
आत्मविश्वास बढ़ाया जिससे वह धीरे-धीरे कविताएँ लिखने में कुशल होकर प्रतिष्ठित कवि
बन गया।
4.
कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक ढोर ले
जाते समय, खेत में पानी डालते और अन्य काम करते समय अकेलापन महसूस करता था। कविता
के प्रति लगाव के बाद वह खेतों में पानी देते समय, भैंस चराते समय कविताओं में खोया रहता था।
धीरे-धीरे वह स्वयं तुकबंदी करने लगा। अब उसे अकेलापन अच्छा लगने लगा था वह अकेले
में कविता गाता, अभिनय व नृत्य करता था।
5.
लेखक का मत है कि जीवन भर खेतों में काम करके कुछ
भी हाथ आने वाला नहीं है। अगर मैं पढ़-लिख गया तो कहीं मेरी नौकरी लग जाएगी या कोई व्यापार
करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है। दत्ता जी को जब पता चलता है लेखक के पिता
जी उन्हें पढ़ने से मना करते है तो राव पिता जी को बुलाकर खूब डाँटते हैं और कहते
हैं कि तू सारा दिन क्या करता है? बेटे और पत्नी को खेतों में जोत कर तू सारा दिन
साँड की तरह घूमता रहता है। कल से बेटे को स्कूल भेज, अगर पैसे नहीं हैं तो फीस मैं दूँगा। पिता जी
दत्ता जी राव के सामने 'हाँ' करने के बावजूद भी वे आनद को स्कूल भेजने के पक्ष
में नहीं थे।
हमारे खयाल से पढ़ाई-लिखाई के
सम्बन्ध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया लेखक के पिता की सोच से ज्यादा ठीक है।
6.
दत्ता जी
राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना
पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेते और सच बताते कि उन्होंने दत्ता जी राव से पिता को
बुलाकर लेखक को स्कूल भेजने के लिए कहा है तो लेखक के पिताजी उनके घर न जाते उल्टा
माँ-बेटे की पिटाई कर देते।लेखक को खेती में झोंक देते।
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