Ateet Me Dabe Paanv – Om Thanavi अतीत में दबे पाँव ओम थानवी Question Answers
अभ्यास
1. सिंधु—सभ्यता साधन—संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे?
2. ‘सिंधु—सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य—बोध है जो राज—पोषित या धर्म—पोषित न होकर समाज— पोषित था।’
ऐसा क्यों कहा गया?
3. पुरातत्त्व के किन
चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि - “सिंधु—सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित
सभ्यता थी।”
4. ‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी—फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं वे आकाश की तरफ
अधूरी रह जाती हैं लेकिन उन अधूरे
पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है। है कि आप दुनिया की छत पर हैं,
वहाँ से आप इतिहास को नहीं उस के पार झाँक रहे
हैं।’ इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?
5. टूटे—फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ—साथ धड़कती ज़िंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज़ होते
हैं - इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
6. इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जिसे बहुत
कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल,
जिसको आपने नज़दीक से देखा हो,
का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
7. नदी,
कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक
पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल—संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में?
तर्क
दें।
8. सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं
मिला है। सिर्फ़अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअनजो—दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। क्या आपके मन
में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह—चर्चा करें।
1.
सिंधु सभ्यता, एक साधन-सम्पन्न सभ्यता थी परंतु उसमें
राजसत्ता या धर्मसत्ता के चिह्न नहीं मिलते। वहाँ की नगर योजना, वास्तुकला, मुहरों, ठप्पों, जल-व्यवस्था, साफ़-सफाई और सामाजिक व्यवस्था आदि की एकरूपता
द्वारा उनमें अनुशासन देखा जा सकता है। यहाँ पर सब कुछ आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ
है, भव्यता का प्रदर्शन कहीं
नहीं मिलता। अन्य सभ्यताओं में राजतंत्र और धर्मतंत्र की ताकत को दिखाते हुए भव्य
महल, मंदिर ओर मूर्तियाँ बनाई
गईं किंतु सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में छोटी-छोटी मूर्तियाँ, खिलौने, मृद्-भांड, नावें मिली हैं। 'नरेश' के सर पर रखा मुकुट भी छोटा है। इसमें
प्रभुत्व या दिखावे के तेवर कहीं दिखाई नहीं देते।
2.
सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का
महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या
नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की
मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप
सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्धि से ज्यादा कला-सिद्धि ज़ाहिर करता है। अन्य सभ्यताओं
में राजतंत्र और धर्मतंत्र की ताकत को दिखाते हुए भव्य महल, मंदिर ओर मूर्तियाँ बनाई गईं किंतु सिंधु घाटी
सभ्यता की खुदाई में छोटी-छोटी मूर्तियाँ, खिलौने, मृद्-भांड, नावें मिली हैं। 'नरेश' के सर
पर रखा मुकुट भी छोटा है। इसमें प्रभुत्व या दिखावे के तेवर कहीं दिखाई नहीं देते।
यहाँ आम आदमी के काम आने वाली चीजों को सलीके से बनाया गया है।
अतः सिंधु सभ्यता की खूबी उसका
सौन्दर्यबोध है जो कि समाज पोषित है, राजपोषित
या धर्मपोषित नहीं है।
3.
हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रसाद मिले
हैं, न मंदिर। न राजाओं, महंतों की समाधियाँ। यहाँ के मूर्तिशिल्प
छोटे हैं और औज़ार भी। मुअनजो-दड़ो 'नरेश' के सर पर रखा मुकुट भी छोटा है। दूसरी जगहों
पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। यहाँ आम
आदमी के काम आने वाली चीज़ों को सलीके से बनाया गया है। यहाँ नगरयोजना, वास्तुकला, मुहरों, ठप्पों, जल-व्यवस्था, साफ़-सफ़ाई और सामाजिक व्यवस्था आदि में
एकरूपता देखने मिलती है। इन आधारों पर विद्वान यह मानते हैं कि 'सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा
समझ से अनुशासित सभ्यता थी।'
4.
इस कथन से लेखक
का आशय है कि इन टूटे-फूटे घरों की सीढ़ियों पर खड़े होकर आप विश्व की सभ्यता के
दर्शन कर सकते हैं क्योंकि सिंधु सभ्यता विश्व की महान सभ्यताओं में से एक है।
सिंधु सभ्यता आडंबररहित एवं अनुशासनप्रिय है। यहाँ के मकानों की सीढ़ियाँ उस कालखंड
तथा उससे पूर्व का अहसास कराती हैं जब यह सभ्यता अपने चरम पर रही होगी। यह सभ्यता
विश्व की प्राचीनतम सभ्यता है। खंडहरों से मिले अवशेषों और इन टूटे-फूटे घरों से
मानवता के चिह्न और मानवजाति के क्रमिक विकास को भी देखा जा सकता है। इसकी नगर
योजना अद्वितीय है। उस समय का ज्ञान, उसके द्वारा स्थापित मानदंड आज भी हमारे लिए
अनुकरणीय हैं। इस प्रकार हम इन सीढ़ियों पर चढ़कर किसी इतिहास की ही खोज नहीं करना
चाहते बल्कि सिंधु सभ्यता के सभ्य मानवीय समाज को देखना चाहते हैं।
5.
यह सच है कि
टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता
और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का
दस्तावेज़ होते हैं। यह खंडहर उस समय की संस्कृति का परिचय कराते हैं। आज भी हम
किसी भी मकान की देहरी पर पीठ टिकाकर सुस्ता सकते हैं। रसोई की खिड़की पर खड़े होकर
उसकी गंध को या बैलगाड़ी की रुनझुन को महसूस कर सकते हैं इस प्रकार नगर-नियोजन,
धातु एवं पत्थर की मूर्तियाँ,
मृद-भांड, उन पर चित्रित मानव और अन्य आकृतियाँ, मुहरें, उन पर बारीकी से की गई चित्रकारी इतिहास के दस्तावेज होने
के साथ-साथ उस अनछुए समय को भी हमारे सामने उपस्थित कर देते हैं।
6.
चारमीनार इस बार की छुट्टियों में देखा हुआ
हैदराबाद शहर का चारमीनार हमेशा यादों में बसा रहेगा। हैदराबाद शहर प्राचीन और
आधुनिक समय का अनोखा मिश्रण है जो देखने वालों को 400 वर्ष पुराने भवनों की भव्यता
के साथ आपस में सटी आधुनिक इमारतों का दर्शन कराता है।
चार मीनार 1591 में शहर के
मोहम्मद कुली कुतुब शाह द्वारा बनवाई गई बृहत वास्तुकला का एक नमूना है।
शहर की पहचान मानी जाने वाली
चार मीनार चार मीनारों से मिलकर बनी एक चौकोर प्रभावशाली इमारत है। यह स्मारक
ग्रेनाइट के मनमोहक चौकोर खंभों से बना है, जो उत्तर, दक्षिण, पूर्व
और पश्चिम दिशाओं में स्थित चार विशाल आर्च पर निर्मित किया गया है। यह आर्च कमरों
के दो तलों और आर्चवे की गैलरी को सहारा देते हैं। चौकोर संरचना के प्रत्येक कोने
पर एक छोटी मीनार है। ये चार मीनारें हैं, जिनके कारण भवन को यह नाम दिया गया है। प्रत्येक
मीनार कमल की पत्तियों के आधार की संरचना पर खड़ी है। इस तरह चारमीनार को देखकर
हुई अनुभूति एक स्वप्न को साकार होने जैसी थी।
7.
मुअनजो-दड़ो के निकट बहती हुई सिंधु नदी, नगर
में कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखकर लेखक ने सिंधु घाटी की
सभ्यता को जल-संस्कृति कहा है। मैं लेखक से पूर्णतया सहमत हूँ।
प्रत्येक घर में एक
स्नानघर था। घर के भीतर से पानी या मैला पानी नालियों के माध्यम से बाहर हौदी में
आता है और फिर बड़ी नालियों में चला जाता है। कहीं-कहीं नालियाँ ऊपर से खुली हैं
परंतु अधिकतर नालियाँ ऊपर से बंद हैं।
इनकी जलनिकासी व्यवस्था
बहुत ही ऊँचे दर्जे की थी।
नगर में कुओं का प्रबंध
था। ये कुएँ पक्की ईटों के बने थे। अकेले मुअनजो-दड़ों नगर में सात सौ कुएँ हैं।
यहाँ का महाकुंड लगभग
चालीस फुट लम्बा और पच्चीस फुट चौड़ा है।
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