SHAILENDRA – TEESRAI KASAM KE SHILPKAAR प्रहलाद अग्रवाल — तीसरी कसम के श्ल्पिकार श्ौलेंद्र CLASS X HINDI B 2 MARKS QUESTIONS ANSWERS
2 Marks Questions
1.
‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।
2.
लेखक ने राजकपूर को ‘एशिया का सबसे बड़ा शोमैन’ कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?
3.
राजकपूर द्वारा फिल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फिल्म क्यों बनाई?
4.
‘तीसरी कसम’ अन्य फि़ल्मों से किस तरह भिन्न थी?
5.
फिल्मों में त्रासद स्थितियों को ग्लोरिफाई क्यों किया जाता है?
6.
शैलेंद्र के किस गीत पर शंकर-जयकिशन ने आपत्ति की थी और क्यों?
7.
‘तीसरी कसम’ फिल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है?
8.
‘तीसरी फिल्म’ को खरीदार क्यों नहीं मिले?
9.
शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्त्तव्य क्या है?
2 Marks Answers
1.
‘तीसरी कसम’ फिल्म का
नायक ‘हीरामन’ एक खालिस
भुच्च देहाती
गाडीवान है।
हीरामन की
भूमिका राजकपूर
ने निभाई
थी। राजकपूर
उस समय
एशिया के
सबसे बड़े ‘शोमैन’ के
रूप में
विख्यात थे।
परंतु इस
फिल्म में
राजकपूर एक
स्टार कलाकार
के रूप
में नहीं
नजर आते।
उनका महिमामय
व्यक्तित्व हीरामन
की आत्मा
में उतर
गया है।
वे फिल्म
में अपने
स्वाभाविक अभिनय
द्वारा हीरामन
की भूमिका
को जीवंत
करते हैं।
एक भोले
ग्रामीण के
रूप में
वे बिलकुल
वास्तविक लगते
हैं। ऐसा
प्रतीत होता
है मानो
राजकपूर और
हीरामन एक
ही हो
।
2. ‘शोमैन’ से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो अपनी कला, अभिनय, व्यक्तित्व और आकर्षण के कारण सर्वत्र लोकप्रिय हो। उस समय राजकपूर के अभिनय की धूम पूरे एशिया में थी। एशिया भर में उनके प्रशंसक थे। सम्पूर्ण एशिया में लोग उनकी फिल्मों के दीवाने थे। इसलिए लेखक ने उन्हें ‘एशिया का सबसे बड़ा शोमैन’ कहा है।
3.
राजकपूर
यह बात
भली भाँति
जानते थे
कि शैलेंद्र
सरल और
सच्चे कवि
ह्रदय व्यक्ति
हैं। इसीलिए
राजकपूर ने
शैलेंद्र को
फिल्म की
असफलता के
खतरे से
आगाह किया
था। परंतु
शैलेंद्र भावुक-ह्रदय कवि
थे। वे
धन और
यश की
लिप्सा से
कोसों दूर
थे। वे
केवल आत्मसंतुष्टि
के लिए
फिल्म बनाना
चाहते थे।
इसलिए उन्होंने
खतरा उठाकर
भी फिल्म
बनाई।
4.
‘तीसरी कसम’ फि़ल्म ने साहित्य-रचना के साथ पूरा-पूरा न्याय किया था। फि़ल्म की साहित्यकता को ज्यों का त्यों रहने दिया, उसमें फि़ल्मी मसालों का तड़का नहीं लगाया था। जबकि अन्य फि़ल्मों को लोकप्रिय बनाने के लिए मूल कथा से छेड़छाड़ की जाती है।
5.
फिल्मों
में त्रासद
स्थितियों को
ग्लोरिफाई इसलिए
किया जाता
है। ताकि
दर्शकों का
भावनात्मक शोषण
किया जा
सके । दुःख का
ऐसा वीभत्स
रूप प्रस्तुत
किया जाता
है जिससे
दर्शक भावनात्मक
रूप से
फिल्म देखने
के लिए
विवश हो
जाता है
जिससे फिल्म
खूब बिकती
है।
6.
शैलेंद्र
ने ‘श्री ४२०’ फिल्म के लिए एक
गीत लिखा था ‘प्यार
हुआ इकरार हुआ’।
इसका एक अंतरा था ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’, इस पर संगीतकार शंकर- जयकिशन ने यह कहकर
आपत्ति की कि दर्शक ‘चार दिशाएँ’ तो
समझ सकते हैं परंतु ‘दस दिशाएँ’ नहीं।
7.
कविता
भावपूर्ण होती
है और
इसमें सघन
संवेदना होती
है। ‘तीसरी
कसम’ साहित्य
रचना पर
आधारित फिल्म
थी। इसमें
कविता के
समान सूक्ष्म
और गहन
संवेदना थी।
यह अत्यंत
भावपूर्ण फिल्म
थी। अतः
इस फिल्म
को ‘सैल्यूलाइड
पर लिखी
कविता’ कहा
गया है
।
8.
‘तीसरी फिल्म’ साहित्य रचना पर आधारित फिल्म थी। इसमें लोक-लुभावन मसाले नहीं
थे। यह अत्यधिक संवेदनशील फिल्म थी। इसकी संवेदना दो से चार बनाने वालों की समझ से
परे थी। इसलिए इस फिल्म को खरीदार नहीं मिले।
9.
शैलेंद्र
का यह
दृढ़ मंतव्य
था कि
दर्शकों की
रूचि की
आड़ में
उन पर
उथलेपन को
थोपना नहीं
चाहिए वरन्
कलाकार का
कर्त्तव्य है
कि वह
उनकी रुचियों
का परिष्कार
करे।
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