सभी को नहीं, मानवता को संतुष्ट कीजिए Sbhi Ko Nahin Manavata Ki Santushta Kijie By Avinash Ranjan Gupta
सभी को नहीं, मानवता को संतुष्ट कीजिए
यह निर्विवाद (Undisputed) सत्य
है कि आप सभी को संतुष्ट नहीं कर सकते न ही सभी की नज़रों में शत-प्रतिशत साबित हो
सकते हैं और न ही आलोचना से बच सकते हैं। अपने कथनों को पुष्ट करने के लिए मैं
उदाहरण के रूप में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अद्वितीय व्यक्तित्व का वर्णन
करना चाहूँगा जिन्होंने लगभग दो धोती और प्रतिदिन 4-6 घंटे की निद्रा लेकर अपना
सारा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया और अंत में गोली मार्कर उनकी हत्या कर दी
गई।
इस ठोस उदाहरण से
और आपके मस्तिष्क में आ रहे आपके अपने अनुभवों के आधार पर यह तो तय हो ही गया होगा
कि आप सभी को संतुष्ट नहीं कर सकते। अगर आपको स्वभाववश या अपनी खुशी के लिए संतुष्ट करना ही है तो मानव को नहीं मानवता
को संतुष्ट कीजिए। इसके पीछे का पुख्ता कारण यह है कि कुछ लोग विकृत मानसिकता के
होते हैं और उन्हें अपनी भलाई और बुराई की भी समझ नहीं होती है। प्रकृति जब अपने
नियमानुसार बारिश भी करती है तो कुछ लोग इसे प्राकृतिक कारण और कृपा समझकर इसका
स्वागत करते हैं उसी समय कुछ लोग इसे आफ़त समझकर अपनी हक़ीक़त बयान करने लगते हैं। ऐसे
लोग सृष्टि के आरंभ से लेकर सृष्टि के अंत तक रहेंगे।
अब सवाल में बवाल
यह है कि हमें तो अपने कामों से ही फुर्सत नहीं हैं। हम हमेशा अपने आपको परिवार, रिश्तेदार और
जीविकोपार्जन के कामों में उलझे हुए पाते हैं तो फिर ऐसे कार्य करने का समय हम कब
निकाल पाएँगे? इसका सीधा-सा उत्तर यह है कि अच्छाई कहीं से भी और कभी भी शुरू
की जा सकती है। आप जो काम कर रहे हैं, उस काम को पूरी ईमानदारी से कीजिए। अपने बच्चों
में नैतिक मूल्यों का संचार कीजिए। अपने अंदर एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के सभी
गुणों को पैदा कीजिए। अपने राष्ट्र में फैली लैंगिक असमानता (Gender Inequality) को
दूर करने हेतु अपनी माँ, बहन और बेटी को उनके अधिकारों का वहन करने दीजिए। उन चीज़ों का
प्रयोग वर्जित करें जो स्वास्थ्य, समाज के लिए हानिकारक हो। संसाधनों (Resources) का
प्रयोग अंधाधुंध न करके आवश्यकतानुसार करें ताकि हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए वो
संसाधन केवल नाम न रहकर वास्तविकता में रहें। ज़रूरतमंदों की मदद करके यह अभिमान न
आने पाए कि आप श्रेष्ठ हैं बल्कि ये विचार आने चाहिए आपने पृथ्वी पर रहने का किराया
दिया है। अगर आपने ऐसा किया तो आप दुनिया के तन और मन दोनों से सबसे सुंदर व्यक्ति
बन जाएँगे।
इसमें आपकी
प्रतिद्वंद्विता किसी से नहीं होगी और न ही आपको इस बात का डर लगेगा कि अगर मेरा
काम न हुआ तो मुझे व्यक्तिगत नुकसान होगा क्योंकि आपके काम सभी के लिए होंगे और जब
उद्देश्य उत्तम और ऊँचे हो तो ऊपरवाला भी अपने ही साथ होता है।
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