कबीर के दोहे KABEER KE DOHE CLASS X B 5 MARKS QUESTION ANSWERS
5 Marks Questions
1.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
2.
"एकै आषिर पीव का, पढै सो पंडित होइ"- इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
3.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ सोना और जागना किसके प्रतीक हैं ? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
4.
दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के सन्दर्भ में स्पष्ट करें?
5.
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
6.
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
7.
"कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूँढे बन मांहि।" इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए-
8.
" जब में था तब हरी नहीं,अब हरी हैं मैं नाँहि।"इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए-
9.
कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
10.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक है? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
11.
"पोथी पढि़ पढि़ जग मुवा, पंडित भया न कोइ।" इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए-
12.
कबीर की साखियों से कौन- कौन से जीवन मूल्यों की प्राप्ति होती है?
13.
कबीर द्वारा उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए?
14.
"बिरह भुवंगम तन बसै, मन्त्र न लागै कोइ।" इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए-
5 Marks Answers
1.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने अपनी निंदा करने
वाले और हमेशा आपकी कमी निकालने वाले व्यक्ति को अपने निकट रखने का सुझाव दिया है।क्योंकि
इसके द्वारा हम अपनी कमियों को जानकार उसे दूर कर सकते हैं और निर्मल मन और
निर्विकार सोच की प्राप्ति कर सकते हैं-
2.
इस पंक्ति के द्वारा कवि कहना चाहते हैं कि प्रेम
रूपी ज्ञान से युक्त व्यक्ति पंडित होता है। इसी ज्ञान के द्वारा वह परब्रहम को
प्राप्त कर सकता है। अनगिनत पोथियों का ज्ञाता भी शायद उस ब्रह्म के दर्शन का सुख
पाने में असफल हो जाता है पर प्रेम के ज्ञान से युक्त व्यक्ति अपने प्रेम से ही
ईश्वर को पा लेता है। अत: प्रेम से युक्त मनुष्य ही वास्तविक पंडित है।
3.
इस संसार में भौतिक सुखों का भोग करने वाला व्यक्ति सुखी है और संसार को अपने
सही मार्ग से विचलित होता देख चिंता करने वाले व्यक्ति दुखी । यहाँ सोना अज्ञानता
और अकर्मण्यता का प्रतीक है और जागना ज्ञान और चिंतन का।क्योंकि सांसारिक सुखों के
आनंद में लिप्त व्यक्ति यह सोच सोता रहता है कि उसने जीवन का सर्वस्व पा लिया है।
वह संसार की इस चकाचौंध को ही परम लक्ष्य मान लेता है। जबकि मोक्ष या ब्रह्म को
प्राप्त करने के उद्यम में लगा व्यक्ति अनवरत प्रयासरत रहता है और ब्रह्म को पाने
की उत्कट इच्छा के कारण वह जागता रहता है।
4.
यहाँ दीपक का अर्थ ज्ञान से है, जैसे दीये के जलते ही अन्धेरा मिट जाता है ठीक वैसे ही
ज्ञान के प्रकाश के आते ही अज्ञानता रूपी अन्धकार खत्म हो जाता है और उस परमात्मा
से साक्षात्कार हो जाता है।इस साखी में अज्ञानता के अन्धकार के मिटने की बात कही
गई है।
5.
मीठी वाणी के प्रयोग द्वारा हम दूसरों के हृदय को सुख और अपने आप को शीतलता
प्रदान करते हैं क्योंकि मधुर वचन सुनकर क्रोधित व्यक्ति भी अपने क्रोध को भूल
जाता है और उसे सुख तथा सम्मान का अनुभव होता है। मधुर वचन बोलकर हमें अपने आप में
भी संतुष्टि मिलती है और अच्छे वचन बोलने के कारण शरीर में उत्तेजना भी नहीं आती
साथ-ही-साथ शरीर शांत
रहता है।
6.
कण-कण में व्याप्त ईश्वर को भी
हम नहीं देख पाते क्योंकि हम ईश्वर प्राप्ति के अनेक बाह्य आडम्बरों में उलझे रहते
हैं और अपनी अज्ञानता के कारण अपने मन के भीतर और कण-कण में व्याप्त ईश्वर से साक्षात्कार नहीं कर पाते हैं।कर्मकांडों
और अज्ञानता के जाल से बाहर ही नहीं निकल पाते जहाँ ईश्वर प्रत्यक्ष रूप में हमारे
समक्ष खड़ा है।यही अज्ञानता हमारे और उस सर्वव्यापी ईश्वर के मध्य का रोड़ा है।
7.
आशय : कवि कह रहे हैं
कि जिस प्रकार मृग के नाभिक में कस्तूरी होने के बावजूद वह उसकी तलाश में वन-वन भटकता रहता
है। उसे इस बात का ज्ञान ही नहीं की जिस खुशबू की तलाश में वह भटक रहा है वह तो
उसके अंदर ही निहित है। अर्थात् हम जिस ईश्वर की तलाश में भटकते रहते हैं वह
परमात्मा तो इस ब्रह्मांड के कण-कण में व्याप्त है आवश्यकता है तो उसे
पहचानकर उसे पाने की।
8.
आशय
: अर्थात अहंकार और
स्वार्थ भाव से स्वतंत्र ह्रदय ही ईश्वर का निवास स्थान बन सकता है। अभिमान और
अहम् पूरित मन में ईश्वर की कल्पना भी असंभव है । तात्पर्य यह है कि यदि हमें
भक्ति का मार्ग चुनना है तो सर्वप्रथम अपने अहम् का त्याग करना ही पड़ेगा। अपने आप
को ईश्वर में मिलाकर ही हां ईश्वर के नजदीक पहुँच सकते हैं, जबतक मेरा या मैं
की भावना मन में रहेगी तबतक उस ईश्वर को पाना संभव ही नहीं है।
9.
कबीर की साखियों की भाषा ‘सधुक्कड़ी’ है। कबीर ने पूर्वी हिंदी, ब्रज, अवधी, पंजाबी, राजस्थानी आदि भाषाओं का
एक साथ मेलकर सहज प्रयोग किया है। इसीलिए उनकी भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’
भी कहते हैं। वस्तुतः
उन्होंने भाषा के बंधन को स्वीकार न करके भावों के सम्प्रेषण पर विशेष बल दिया है।
इसी कारण उन्हें ‘भाषा का डिक्टेटर’ भी कहा गया। उनका प्रयास रहा कि उनकी बात जनसाधारण तक पहुँचे
इसलिए उन्होंने सरल, सहज भाषा का प्रयोग किया
है।
10.
संसार में सुखी व्यक्ति वह है जो खाता और सोता है क्योंकि वह निश्चिन्त है और कबीरदास के समान व्यक्ति दुखी है क्योंकि वे दुनिया की दशा देखकर चिंतित है और जागते हैं और रोते हैं।
यहाँ ‘सोना’ अज्ञान
में पड़कर विषय- वासनाओं
में डूबे रहने को कहा गया है जबकि ‘जागना’ जागरूक होने को प्रतीक है जो ज्ञान प्राप्ति के
द्वारा हुआ जा सकता है । यहाँ इनका प्रयोग प्रतीकों के रूप में हुआ है। इन प्रतीकों का प्रयोग कर कबीरदास जी यह बताना चाहते हैं कि दुनिया से बेफिक्र होकर सांसारिक भोगों में डूबे व्यक्ति अभी आमोद-प्रमोद में डूबे हैं और इसे ही सुख समझ रहे हैं जबकि वास्तव में यह सच्चा सुख नहीं है। इस संसार की वास्तविकता से परिचित होकर ईश्वर के रहस्य को समझाने वाला व्यक्ति ईश्वर को खोजने के लिए दुखी रहता है वही सच्चा सुखी व्यक्ति है क्योंकि वह संसार की दशा को देखकर दुखी है।
11.
आशय : हजारों ज्ञान
की पुस्तकें भी व्यक्ति में पांडित्य नहीं ला सकती यदि वह इंसान प्रेम रुपी ज्ञान
से अनभिज्ञ है । प्रेम के ज्ञान का एक अक्षर भी ग्रहण कर जीवन में उसका अनुपालन
करने वाला व्यक्ति ही महाज्ञानी और पंडित बन सकता है।मात्र किताबी ज्ञान हासिल
करते-करते तो कितने
ही विद्वान इस दुनिया से जा चुके हैं किन्तु पांडित्य किसी को नहीं मिल पाया। कोई
भी ज्ञान की पारंगता को प्राप्त नहीं कर सका।
12.
कबीर की साखियों से हमें निम्नलिखित जीवन मूल्यों की
प्राप्ति होती है-
- मीठी
वाणी के
प्रयोग की
- अहंकार न करने की
- बाह्य आडम्बर न करने की
- कण-कण में ईश्वर-दर्शन की
- ज्ञान प्रसार कर जागरूक होने की
- निंदक को समीप रखने की
- जीव मात्र से प्रेम करने की
13.
कबीर की सखियों में प्रयुक्त भाषा में
निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
ü इनकी भाषा सरल और सुग्राह्य है ।
भाषा में क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है ।
साखियों में पूर्वी हिन्दी और बोलियों का प्रयोग किया है ।
आंचलिकता का बहुत प्रभाव है।
भाषा में क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है ।
साखियों में पूर्वी हिन्दी और बोलियों का प्रयोग किया है ।
आंचलिकता का बहुत प्रभाव है।
ü ५. अलंकारों का अनभिप्रेत प्रयोग
14.
आशय
: इन पंक्तियों में
विरही के शारीरिक अवस्था का ज्ञान कराते हुए कबीर कह रहे हैं कि ईश्वर या अपने
आराध्य के विरह में भटकते व्यक्ति के तन पर किसी मन्त्र या दुआ का असर नहीं होता
है। उसे तो उसके प्रियतम की एक झलक ही सब दुखों से मुक्त करा सकती है ।भगवान से
मिलन ही भक्त की उत्कट इच्छा को पूर्ण कर सकती है शेष कोई विकल्प नहीं है। अर्थात्
जिसके मन के अन्दर ही विरह रूपी सर्प का वास हो चुका है उसके तन पर किसी भी दावा
या दुआ का असर होना संभव नहीं है।
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