‘अब कहाँ दूसरे के दुःख से दुखी होने वाले’ AB KAHAN DOOSRO KE DUKH SE DUKHI HONE WAALE 2 MARKS QUESTIONS ANSWERS
2 Marks Questions
1.‘सुलेमान जीव-जंतुओं से प्रेम करते थे’-सिद्ध कीजिए ?
2.‘मट्टी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान।
किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान।।’
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
3.शेख अयाज के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़ कर क्यों उठ खड़े हुए?
4.‘डेरा
डालने’ से
आप क्या
समझते हैं? पाठ के
आधार पर
स्पष्ट कीजिए?
5.लेखक की माँ ने पूरे दिन रोजा क्यों रखा?
6.लेखक ने
ग्वालियर से
मुंबई तक
किन बदलावों
को महसूस
किया?
7.अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?
8.लेखक की
माँ किस
समय पेड़ों
के पत्ते
तोड़ने के
लिए मना
करती थी
और क्यों?
9.प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ?
2 Marks Answers
1. सुलेमान जीव-जंतुओं से प्रेम करते थे यह एक घटना से सिद्ध होता है- एक बार सुलेमान अपने लश्कर के साथ एक रास्ते से गुजर रहे थे। रास्ते में कुछ चींटियों ने घोड़ों की टापों की आवाज से डरकर एक-दूसरे से कहा ‘जल्दी से अपने बिलों में चलो, फ़ौज आ रही है।’ तब सुलेमान ने चींटियों से कहा-‘ घबराओ नहीं, सुलेमान को खुदा ने सबका रखवाला बनाया है। मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं सबके लिए मुहब्बत हूँ।’ तब चींटियों ने उनके लिए ईश्वर से दुआ की।
2. इन पंक्तियों
के माध्यम
से लेखक
यह कहना
चाहता है
कि सभी
प्राणियों का
शरीर मिटटी
से निर्मित
है और
मृत्यु के
उपरांत शरीर
फिर से
मिटटी ही
बन जाता
है तब
यह नहीं
कहा जा
सकता कि
कौन सी
मिटटी कौन
से शरीर
की थी।
इसलिए परमात्मा
द्वारा निर्मित
जीवों और
मनुष्यों में
भेदभाव करना
उचित नहीं
है।
3. शेख अयाज के पिता कुएँ पर से नहाकर लौटे और भोजन करने लगे। अचानक उन्हें अपनी बाजू पर रेंगता काला च्योंटा दिखा। वह तुरंत भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए। माँ द्वारा यह पूछने पर कि क्या भोजन अच्छा नहीं लगा? उन्होंने ज़बाब दिया कि उन्होंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। और अब वह उस च्योंटे को वापस उसके घर अर्थात् कुएँ पर छोड़कर अपनी भूल का प्रायश्चित करना चाहते हैं।
4.
‘डेरा डालना’ का अर्थ होता है- ‘अस्थाई रूप से रहना’। यायावर जातियाँ और समुदाय यहाँ-वहाँ डेरा डालकर रहते हैं। उनका अपना कोई स्थाई निवास नहीं होता। पाठ के आधार पर हम कह सकते हैं कि जंगलों को काट कर बड़ी-बड़ी बस्तियाँ बस जाने से अनेक परिंदों -चरिन्दों का आश्रय छिन गया। कुछ तो शहर छोड़कर चले गए ।कुछ ने इधर –उधर डेरा डाल दिया अर्थात निवास या घोंसले बना लिए।
5. लेखक के ग्वालियर वाले घर के दालान में दो रोशनदान थे। उनमें कबूतर के एक जोड़े ने घोंसला बना लिया था। एक बार बिल्ली ने एक अंडा तोड़ दिया। दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश में लेखक की माँ के हाथ से अंडा गिरकर टूट गया। कबूतरों का दुख देखकर लेखक की माँ रोती रही और खुदा से अपना गुनाह मुआफ़ कराने के लिए पूरे दिन रोज़ा रखा।
6. लेखक ने ग्वालियर से मुंबई तक अनेक बदलावों को
महसूस किया। पहले लोग बड़े-बड़े दालानों और आंगनों वाले घरों में रहते थे अब
जीवन डिब्बे जैसे घरों में सिमट गया है। पहले जहाँ घने जंगल थे,पेड़ थे ,परिंदे और
पशुओं का वास था । परंतु अब जंगलों को काट कर मानव- बस्तियां बन गईं हैं। पहले मनुष्य जीव-जंतुओं, पेड़-पोधों, प्रकृति के
लिए संवेदनशील था परंतु आज मनुष्य आत्मकेंद्रित हो गया है और संवेनशीलता समाप्त
होने लगी है।
7. अरब में लशकर को नूह के नाम से इसलिए याद किया जाता है क्योंकि वे सारी उम्र रोते रहे थे। इसका कारण एक ज़ख़्मी कुत्ता था। नूह ने उस घायल कुत्ते को दुत्कारते हुए कहा था “दूर हो जा गंदे कुत्ते”! इस पर कुत्ते ने ज़बाब दिया “ न मैं अपनी मर्जी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इंसान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।’ यह सुनकर लश्कर पश्चाताप स्वरूप मुद्दत तक रोते रहे। तभी से उन्हें ‘नूह’ नाम से जाना जाने लगा।
8. लेखक की
माँ सूरज
ढले पेड़ों
के पत्ते
तोड़ने के
लिए मना
करती थीं
क्योंकि उनका
मानना था
कि सूरज
ढले पेड़ों
के पत्ते
तोड़ने से
पेड़ रोते
हैं। इसके
पीछे उनकी
मंशा प्रकृति
का सम्मान
करने की
थी।
9. प्रकृति में आए असंतुलन के कारण अब गर्मी में ज्यादा गर्मी, बेवक्त की बरसातें, जलजले, सैलाब, तूफान और नित नए रोग आदि का सामना करना पड़ रहा है।
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