Shabdarth Sahit Vyakhya
पद्य – 2 मीरा
पद
(1)
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।।
शब्दार्थ
1. बढ़ायो — बढ़ाना
2. गजराज — ऐरावत
3. चीर – कपड़ा
4. भगत – भक्त
5. सरीर – शरीर
6. पीर – कष्ट
7. गिरधर – कृष्ण
8. कुंजर — हाथी
9. ज़रदार - मालदार, दौलतमंद
10. बेनवा - कमज़ोर
11. निअमत - स्वादिष्ट भोजन
मीराबाई श्रीकृष्ण के अनन्य और एकनिष्ठ प्रेम में अभिभूत होकर उनकी लीलाओं व क्षमताओं का भाव-विभोर होकर गुणगान करती हैं। वह कहती हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण आपने तो युगों-युगों से अपने भक्तों की पीड़ा को जानकार उसका निवारण किया है। द्रौपदी ने जब कौरवों के अत्याचार से आतंकित होकर आपको पुकारा था तो आपने तुरंत उसका चीर बढ़ाकर उसकी लाज रखी थी। भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए आपने नरहरि का रूप भी धारण कर लिया था। आपने डूबते हुए हाथी तथा मगरमच्छ से भी उसकी रक्षा की थी। गिरि को धारण करके आपने अनेक लोगों को इंद्र के कोप से बचाया था। सब की रक्षा और मदद करने वाले प्रभु मेरी भी पीड़ा दूर करो।
(2)
स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कूँज गली में, गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूँ बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ।।
शब्दार्थ
1. पास्यूँ — पाना
2. लीला — विविध रूप
3. सुमरण — याद करना / स्मरण
4. धेनु – गाय
5. जागीरी — जागीर / साम्राज्य
6. जमानाजी – यमुना
7. पीतांबर — पीला वस्त्र
8. वैजंती — एक फूल
9. तीरां — किनारा
10. अधीराँ (अधीर) — व्याकुल होना
11. द्रोपदी री लाज राखी — दुर्योधन द्वारा द्र्रोपदी का चीरहरण कराने पर श्रीकृष्ण ने चीर को बढ़ाते—बढ़ाते इतना बढ़ा दिया कि दुःशासन का हाथ थक गया
मीरा अपने आराध्य से मनुहार करती हैं कि उन्हें वह अपनी सेविका बना लें। मीरा कहती हैं कि श्याम मुझे अपना नौकर बना लीजिए। मैं दिन-रात अपने स्वामी की सेवा करूँगी। मैं नौकर बनने पर बाग लगाऊँगी। यत्र-तत्र सदा सेवा में तत्पर रहने के कारण मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होगा और वृन्दावन की कुंज गलियों में गोविंद का लीलगायन करते हुए अपने जीवन को सफल बनाऊँगी। आपकी सेवा में मुझे आपके दर्शन व स्मरण का लाभ होगा। भक्ति भाव से बड़ी जागीर भला मेरे लिए क्या हो सकती है। मुझे आठों पहर प्रभु के दर्शन, स्मरण व भक्ति का लाभ होगा। इसी को मैं वेतन स्वरूप स्वीकार करूँगी।
मेरे प्रभु पीले वस्त्र धारण कर माथे पर मोर का पंख मुकुट की भाँति सजाते हैं तथा गले में पाँच प्रकार के फूलों से वैजंती माला सदा शोभा बढ़ाती है। अपनी मुरली से मधुर तान निकालकर सबको अपने वश में करनेवाले गोपाल वृंदावन में गायों को चराते हैं। मैं ऊँचे-ऊँचे महलों के बीच बाग लगाऊँगी उन कुंजों में केसरी साड़ी पहनकर मैं श्रीकृष्ण के दर्शन किया करूँगी। हे प्रभु मेरा हृदय आपके दर्शन के लिए अत्यंत व्यकुल हो रहा है। आप मुझे मध्यरात्रि में यमुना के तट पर दर्शन देकर मुझे कृतार्थ करें।
Comments
Post a Comment