prashn 3
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 - राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
2 - ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।
3 - लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य—रचना के साथ शत—प्रतिशत न्याय किया है?
4 - शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
5 - फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
6 - शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है - कैसे? स्पष्ट कीजिए।
7 - लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि—हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
1. राजकपूर ने शैलेंद्र को पहले ही फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह कर दिया था। यह फ़िल्म भावनाप्रधान थी तथा शैलेन्द्र आदर्शवादी भावुक कवि। लेकिन शैलेंद्र को अपार धन-संपत्ति की कामना नहीं थी। वे तो एक अच्छी फ़िल्म बनाकर आत्मसंतुष्टि करना चाहते थे। या ऐसा कहा जा सकता है कि वे एक महान रचना का निर्माण करना चाहते थे।
2. राजकपूर एक उत्कृष्ट कोटि के कलाकार थे तथा उनका अभिनय चरमोत्कर्ष पर था। उनका व्यक्तित्व महिमामय था। फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में उन्होंने देहाती भावुक गाड़ीवान की भूमिका को इस प्रकार निभाया कि फ़िल्म के पर्दे पर वे पूरी तरह से प्रेम की भाषा समझने वाले भोले-भाले गाड़ीवान ही लगते हैं। उस समय दर्शक उन्हें राजकपूर की तरह नहीं अपितु हीरामन की तरह मानते हैं। वे पूरी तरह से हीरामन से एकाकार हो गए।
3. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म फणीश्वरनाथ रेणु की रचना पर रची गई है। फणीश्वरनाथ रेणु एक महान साहित्यकार थे और साहित्य का अर्थ ही होता है जिससे सभका भला हो सबका हित हो। इस फ़िल्म में कथा की सभी बारीकियों का ध्यान रखा गया है। कथा में हीरामन और हीरबाई के दुख का मानवीय व सहज रूप चित्रित किया गया है। कहीं भी दर्शकों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया है। इसलिए लेखक ने ऐसा लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य—रचना के साथ शत—प्रतिशत न्याय किया है।
4. शैलेंद्र ने अपने गीतों में सरल व सहज ढंग से भावनाओं को अभिव्यक्त किया है। उनके गीतों में कहीं भी क्लिष्टता नहीं है। उनके गीतों मेन जीवन की गहराई, साहित्य का सार और जीवन की उदात्तता झलकती है। इन्हीं कारणों की वजह से उनके गीत बहुत लोकप्रिय हुए।
5. शैलेंद्र उस समय और आज के व्यावसायिक प्रवृत्ति वाले निर्माताओं से काफी अलग थे। ‘तीसरी कसम’ उनकी पहली और अंतिम फ़िल्म थी। वे एक साहित्यप्रेमी भावुक कवि थे। उन्होंने धन कमाने की इच्छा से यह फ़िल्म नहीं बनाई थी बल्कि वे तो एक महान रचना करना चाहते थे। उन्होंने हीरामन और हीरबाई नामक पात्रों के माध्यम से प्रेम की महानता का बखान किया है। इसी वजह से उनकी फ़िल्म को कई पुरस्कार भी मिले।
6. शैलेंद्र गीतकार थे और भावुक कवि भी। व्यक्तिगत जीवन में उनके भावों और विचारों में सागर-सी गहराई थी। उनके आदर्श और भावनाएँ उनकी रचनाओं में झलकते हैं। उन्होंने कभी भी धन-संपत्ति को महत्त्व नहीं दिया। यही सादगी और प्रेम-भावना उनकी फ़िल्म में भी दिखाई पड़ती है। इस फ़िल्म में कहीं भी दर्शकों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया है।
7. लेखक का यह कथन उपयुक्त है कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि—हृदय ही बना सकता था। इसका कारण यह है कि यह भाव प्रधान कथा है। इस फ़िल्म में मूल से लेकर अंत तक केवल सादगी को ही उकेरा गया है जो केवल एक कवि हृदय के पास ही हो सकता है। और सबसे बड़ी बात इस फ़िल्म को धन कमाने की इच्छा से नहीं बनाया गया था जिसकी वजह से कहीं भी किसी भी प्रकार की अश्लीलता का प्रदर्शन नहीं किया गया है। इस वजह से यह फ़िल्म एक विशिष्ट स्थान ग्रहण करने में सक्षम होती है।
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