Prashn 2
(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य—सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -
1 - हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर।
2 - बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।
3 - चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
1. मीराबाई श्रीकृष्ण के अनन्य और एकनिष्ठ प्रेम में अभिभूत होकर उनकी लीलाओं व क्षमताओं का भाव-विभोर होकर गुणगान करती हैं। वह कहती हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण आपने तो युगों-युगों से अपने भक्तों की पीड़ा को जानकार उसका निवारण किया है। द्रौपदी ने जब कौरवों के अत्याचार से आतंकित होकर आपको पुकारा था तो आपने तुरंत उसका चीर बढ़ाकर उसकी लाज रखी थी। भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए आपने नरहरि का रूप भी धारण कर लिया था।
2. मीराबाई श्रीकृष्ण के असीम अनुकंपा से अभिभूत होकर उनकी लीलाओं व क्षमताओं का भाव-विभोर होकर गुणगान करती हैं। वह कहती हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण आपने तो डूबते हुए हाथी तथा मगरमच्छ से भी उसकी रक्षा की थी। गिरि को धारण करके आपने अनेक लोगों को इंद्र के कोप से बचाया था। सब की रक्षा और मदद करने वाले प्रभु मेरी भी पीड़ा दूर करो
3. मीरा अपने आराध्य से मनुहार करती हैं कि उन्हें वह अपनी सेविका बना लें। मीरा कहती हैं कि श्याम मुझे अपना नौकर बना लीजिए। मैं दिन-रात अपने स्वामी की सेवा करूँगी। मैं नौकर बनने पर बाग लगाऊँगी। यत्र-तत्र सदा सेवा में तत्पर रहने के कारण मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होगा और वृन्दावन की कुंज गलियों में गोविंद का लीलगायन करते हुए अपने जीवन को सफल बनाऊँगी। आपकी सेवा में मुझे आपके दर्शन व स्मरण का लाभ होगा। भक्ति भाव से बड़ी जागीर भला मेरे लिए क्या हो सकती है। मुझे आठों पहर प्रभु के दर्शन, स्मरण व भक्ति का लाभ होगा। इसी को मैं वेतन और खर्ची स्वरूप स्वीकार करूँगी।
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