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महत्त्वपूर्ण तथ्य
पाठ ‘ हरिहर काका’ के कुछ
स्मरणीय बिंदु –
1.
पाठ ‘हरिहर काका’ के लेखक मिथिलेश्वर हैं।
2.
जब यह
गाँव पूरी तरह बसा भी नहीं था, कहीं से
एक संत आकर इस स्थान पर झोंपड़ी बनाकर रहने
लगे थे। वह सुबह—शाम यहाँ ठाकुरजी की पूजा करते थे। लोगों से माँगकर खा लेते थे
और पूजा—पाठ की भावना जाग्रत करते थे। बाद में लोगों ने चंदा करके
यहाँ ठाकुरजी का एक छोटा—सा मंदिर बनवा दिया।
3.
गाँव की
अपेक्षा ठाकुरबारी का अधिक विकास हुआ क्योंकि लोगों का यह विश्वास था कि ठाकुरबारी की अनुकंपा के कारण ही उनके बिगड़े और
अटके काम पूरे हो रहे हैं। इसलिए वे दिल खोलकर दान दिया करते थे। इस वजह से गाँव
के अधिकांश लोगों का तन-मन पूर्ण रूप से ठाकुरबारी के प्रति समर्पित रहते थे।
4.
हरिहर काका की 15 बीघे के
ज़मीन के लालच में अपनों तथा परायों के साथ आपसी सद्भाव को बिगाड़ दिया । संपत्ति के लालच में ही हरिहर काका के अपने भाइयों के खून के
रिश्ते को भुला दिया और महंत ने धर्म का मार्ग छोड़कर दादागिरी का मार्ग अपना लिया।
5.
‘पत्नी, बेटे, भाई-बंधु सब स्वार्थ के साथी हैं’- महंत द्वारा कथित इस पंक्ति से यह स्पष्ट होता है कि वे हरिहर काका को
सभी रिश्तों-नातों के मोह से मुक्त करना चाहते है ताकि हरिहर अपनी ज़मीन ठाकुरबारी
के नाम कर दें।
6.
मानव
जीवन में रिश्तों का बहुत महत्त्व होता है पर रिश्ते में मधुरता आत्मीयता के कारण
ही आती है चाहे रिश्ता खून का हो या फिर मानवता का।
7.
बुजुर्गों
की संपत्ति का हकदार उस आदमी होना चाहिए जिसे कि वह बुजुर्ग हक देना चाहे। हरिहर
काका के मामले में न तो उनके भाई और न ही महंत उनकी संपत्ति के सही हकदार हैं।
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