Vyakhya
( 1 )
दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस—ओ—गदा है सो है वो भी आदमी
ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
निअमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी
शब्दार्थ
1. बादशाह - राजा
2. मुफ़लिस - गरीब, दीन—दरिद्र
3. गदा - भिखारी, फ़कीर
4. ज़रदार - मालदार, दौलतमंद
5. बेनवा - कमज़ोर
6. निअमत - स्वादिष्ट भोजन
कवि आदमी के भिन्न-भिन्न रूपों पर प्रकाश डालते हुए कह रहे हैं कि इस दुनिया में तरह-तरह के आदमी हैं। जो आवाम का बादशाह बना बैठा है वह भी आदमी है और उसके पास दुनिया भर की दौलत एशों-आराम हैं। दूसरी तरफ़ जो बिलकुल गरीब और भिखारी हैं वे भी आदमी ही हैं। जो धनवान है वो भी आदमी ही है और जो कमजोर है वी भी आदमी ही है। जो स्वादिष्ट भोजन खा रहा है वह भी आदमी है और जो टुकड़े अर्थात रूखी-सूखी खा रहा है वह भी आदमी ही है।
( 2 )
मसज़िद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ
पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
शब्दार्थ
1. इमाम - नमाज़ पढ़नेवाले
2. ताड़ता (ताड़ना) - भाँप लेना
3. कुरआन – मुसलमानों का पवित्र ग्रंथ
4. नमाज़ – Islamic Prayer
5. खुतबाख्वाँ - कुरान शरीफ़ का अर्थ बतानेवाला
कवि मनुष्य की सबसे उलझाने वाली कृति धर्म तथा धर्मानुष्ठानों और उनके विभिन्न रीति-रिवाज़ों के बारे में कह रहे हैं कि इस दुनिया में मस्जिद बनाने वाला भी आदमी ही है और वह भी आदमी ही है जो मस्जिद में बैठकर नमाज़ पढ़ता है और कुरान शरीफ का अर्थ समझाता है और उनसे कुरान शरीफ का अर्थ समझने वाले सामान्य लोगों का समूह भी मनुष्य ही है। इन सब के विपरीत जो दुष्ट मस्जिद में आकर इमाम और नमाज़ियों की जूतियाँ चुरा ले जाते हैं वे भी आदमी ही हैं और इन चोरों पर नज़र रखने वाले भी आदमी ही हैं।
( 3 )
यां आदमी पै जान को वारे है आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी
शब्दार्थ
1. यां – यहाँ
2. पै – पर
3. वारे – न्योछावर
4. तेग – तलवार
5. पगड़ी –पग, इज्ज़त
कवि कहते हैं कि इस दुनिया में एक आदमी दूसरे आदमी के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है और यहीं पर एक दुष्ट स्वभाव का व्यक्ति तलवार के वार से दूसरे की हत्या कर देता है। इसी दुनिया में कोई किसी की पगड़ी उछालता है यानी दूसरे को अपमानित भी करता है। आवश्यकता पड़ने पर अपनी सहायता के लिए दूसरों को चिल्ला कर पुकारने वाला भी आदमी ही है और उसकी दर्द भरी आवाज़ को सुनकर उसकी मदद की मंशा से दौड़ने वाला भी आदमी ही है। वास्तव में आदमी की अनेक भूमिकाएँ हैं उसकी बदलती परिस्थितियाँ ही उसे तरह-तरह के किरदार निभाने के लिए बाध्य कर देती है।
( 4 )
अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी ।
शब्दार्थ
1. अशराफ़ = शरीफ़ का बहुवचन
2. कमीने = गद्दार
3. शाह = राजा
4. वज़ीर = मंत्री
5. कारे = काले
6. दिलपज़ीर = दिल लुभाने वाला
7. मुरीद = भक्त
8. पीर = गुरु
9. नज़ीर = उदाहरण
कवि अपनी इन पंक्तियों में फिर से इंसानों की फिदरत का ज़िक्र करते हुए कह रहे हैं कि इस दुनिया में कुछ आदमी शरीफ भी हैं और कुछ अव्वल दर्ज़े के कमीने भी। बादशाह से लेकर मंत्री तक सारे मनमाने काम करने वाले आदमी ही हैं। इनके कृत्य कभी सराहनीय होते हैं और कभी निंदनीय। इस दुनिया में आदमी ही शिष्य है और उनको सीख देनेवाला पीर(शिक्षक) भी आदमी ही है। अपने अच्छे कामों के लिए मिसाल बनने वाला भी आदमी ही है और बुरे काम करके बुरा बनने वाला भी आदमी ही है।
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