Prashn 4
लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1- फूल के ऊपर जो रेणु उसका शृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
2- ‘धन्य—धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की’- लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
3- मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।
4- हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम—से—कम उस पर पैर तो रखे।
5- वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
1. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते हैं कि फूल के ऊपर पड़े हुए धूल के कारण ही उसकी शोभा बढ़ जाती है और शिशु के मुख पर लगी मिट्टी उसकी वास्तविक सुंदरता को निखार देती है। अत: हमें चाहिए कि हम कृत्रिम प्रसाधन सामग्रियों का बहिष्कार कर प्राकृतिक उपादानों का अनुसरण करें।
2. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते हैं कि धूल से सने बच्चे को अपने गोद में उठाने वाले व्यक्ति महान हैं । वे अपने शरीर को धूल के संपर्क में लाकर गर्व का अनुभव करते हैं। उन्हें यह आभास है कि हमारा अस्तित्व इसी मिट्टी से बना है।
3. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि धूल और मिट्टी में वास्तव में कोई अंतर नहीं है बल्कि ये एक दूसरे के परिपूरक हैं। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिस प्रकार चाँद से उसकी चाँदनी को अलग नहीं किया जा सकता, शब्द से रस को अलग नहीं किया जा सकता जिस प्रकार देह से प्राण को अलग नहीं किया जा सकता और अगर ऐसा होता है तो इनका वजूद ही नहीं रहेगा। इसी प्रकार धूल और मिट्टी की कल्पना भी स्वतंत्र रूप से नहीं की जा सकती।
4. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते हैं कि हम अपने शब्दों में भले ही अपने आपको देशभक्त कहें। देशभक्ति के नाम पर बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित कर वाहवाही लूटे मगर इससे देशभक्ति सिद्ध नहीं होती है। इसके लिए तो हमें देश की माटी को अपने माथे से लगाना होगा। इस मिट्टी के संसर्ग से अपने को धन्य मानना होगा और अगर इतना भी संभव न हो पाए तो कम से कम हमें इस धरती पर पैर तो रखना ही होगा।
5. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह सिद्ध करना चाहते हैं कि हीरा अनमोल होता है । उसकी चमक सदैव कायम रहती है और यह बहुत कीमती भी होता है परंतु काँच की चमक अल्पायु होती है। आज की पीढ़ी काँच को सामाजिक वैभव का प्रतीक मान चुका है जिस पर यथार्थ रूपी हथोड़े का प्रहार होते ही वह टूट जाता है जबकि हीरा यथार्थ रूपी हथोड़े के प्रहार पर खरा उतरता है। यहाँ हीरा गाँव की अमर सभ्यता का प्रतीक है और काँच दिखावटी नगरीय सभ्यता का।
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