Prashn 4

लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1- उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझताबूझताऔर दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैंउधर जुत जाता है।
2- यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्मईमानईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए लोगों को लड़ानाभिड़ाना।
3- अब तोआपका पूजापाठ न देखा जाएगाआपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
4- तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगादया करकेमनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!

1.    इस कथन का आशय यह है कि साधारण आदमी धर्म के बारे में कुछ नहीं जानता। उसमें सोचने-विचारने की ज़्यादा शक्ति नहीं होती है। वह अपने धर्म-संप्रदाय के प्रति अंधविश्वास रखता है। साधारण आदमी के इसी कमजोरी का फायदा समाज के चंद धर्म  के ठेकेदार उठाते हैं और उन्हें धर्म के नाम पर गुमराह कर देते हैं।
2.    भारत के धार्मिक नेता आम जनता के बुद्धि का शोषण करते हैं। धर्म के नाम पर ऐसे लोग अपनी रोटी सेंकने के लिए लोगों की शक्तियों का दुरुपयोग करते हैं। पहले आम जनता के बीच ईश्वर का नुमाइंदा बनकर अपने प्रति श्रद्धा उत्पन्न करते हैं और धीरे-धीरे खुद ही उस ईश्वर बन बैठते हैं।
3.    इस कथन का आशय यह है कि आने वाली पीढ़ी तकनीकी और धार्मिक स्तर पर तो काफी उन्नत होगी। ऐसे में वे लोग धार्मिक क्रियाओं को पूरी निष्ठा से संपादित करने का दिखावा करते हैं उनके ये दिखावेबाजी ज़्यादा दिन तक नहीं चलेगी। उस समय तो केवल उसे ही सच्चे मायनों में धार्मिक समझा जाएगा जो भले ही धार्मिक क्रियाओं को पूरी निष्ठा से संपादित न करे परंतु उसकी मनुष्यता कसौटी पर खरी उतरे।     


4.    इस कथन का आशय यह है कि धार्मिक व्यक्ति से वो व्यक्ति बेहतर है जो नास्तिक है क्योंकि ये दूसरों की खुशियों की कामना करते हैं। इनके आचरण से दूसरों के हृदय को ठेस नहीं लगती। इनके मतानुसार केवल ईश्वर की भक्ति  ईश्वरत्व नहीं है बल्कि मानव कल्याण का मार्ग धर्म का मार्ग है। मनुष्यता कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है और पशुता स्वार्थ की भावना को बढ़ावा देती है। अब तो यह मनुष्य को ही सोचना है कि वह किसे धर्म बनाए।

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