Prashn 3
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 - धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
2 - ‘बुद्धि पर मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
3 - लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
4 - महात्मा गांधी के धर्म—संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
5 - सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
1. धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग होना चाहिए। शिक्षा का स्तर और भी अधिक उन्नत होना चाहिए, लोगों के बहकावे में नहीं आना चाहिए और धर्म का वास्तविक अर्थ समझना चाहिए।
2. ‘बुद्धि पर मार’ के संबंध में लेखक का विचार है कि समाज के चंद कुटिल लोग अपने स्वार्थ के लिए जनसमुदाय को धर्म के नाम पर भड़काते हैं, उन्हें गुमराह करते हैं। दूसरे संप्रदायों के प्रति जहर घोलते हैं। धर्म- मज़हब के नाम उनमें गलत धारणा भरी जाती है। इससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है और वे अनेक रूपों में समाज के लिए खतरनाक बन जाते हैं।
3. लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना को अपने मन में जगाना चाहिए। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। वह, किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने।।
4. महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं। वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं थे। उनकी बात ले उड़ने के पहले, प्रत्येक आदमी का कर्तव्य यह है कि वह भली—भाँति समझ ले कि महात्माजी के ‘धर्म’ का स्वरूप ऊँचे और उदार तत्त्वों ही का हुआ करता था। उनका धर्म शुद्ध पवित्र भावनाओं से पूर्ण था जिसमें सबके कल्याण की भावना निहित थी।
5. सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना आवश्यक है क्योंकि हम ही इसी समाज की एक इकाई है। जब हम दूसरों के कल्याण के लिए अपने आचरण में परिवर्तन लाएँगे तो दूसरे भी हमारे कल्याण के लिए अपने आचरण में परिवर्तन लाएँगे। ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज से अलग नहीं रह सकता इसलिए हमें समाज को सुकून से जीने लायक बनाने के लिए अपने आचरण में शुद्धता लानी ही होगी।
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