Is Naye Ilake Me By Avinash Ranjan Gupta
IS NAYE ILAKE ME AUR KHUSHBOO RACHATE HAIN HAATH KAVITA KA SHABDARTH click here
IS NAYE ILAKE ME AUR KHUSHBOO RACHATE HAIN HAATH KAVITA KA BHASHA KARYA click here
IS NAE ILAKE ME UAR KHOOSBOO RACHATE HAIN HAATH KAVITAON KI SHABDARTHSAHIT VYAKHYA click here
प्रश्न—अभ्यास
1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
-
(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल
जाता है?
(ख) कविता में कौन—कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है?
(ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता
है?
(घ) ‘वसंत का
गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’
से क्या अभिप्राय है?
(ङ) कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी’ की ओर क्यों इशारा किया है?
(च) इस कविता में कवि ने शहरों की
किस विडंबना की ओर संकेत किया है?
1.
नए बसते इलाके में कवि रास्ता
भूल जाते है क्योंकि शहर में नित्य नए निर्माण हो रहे हैं वो भी इतनी द्रुत गति से
कि रास्ता पहचानने के लिए तय की गईं निशानियाँ
जल्दी ही मिट जाती हैं।
2.
कविता में निम्नलिखित पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है -
Ø पीपल का पेड़ बादशाह
Ø खंडहर बना मकान
Ø ज़मीन का खाली टुकड़ा
Ø दो मकान के बाद रंगीन
लोहे के फाटक वाला एक मंज़िला मकान
3.
कवि अपने निर्धारित घर से एक घर पीछे या दो घर आगे ही ठकमकाते रहते हैं। इसका
कारण है कि नित्य नए निर्माण के कारण होने वाली शहरों की काया-पलट। दूसरी तरफ़ पहचान
के लिए तय किए गए निशान भी लुप्त होते जा रहे हैं।
4.
‘वसंत का गया पतझड़’
और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’ से अभिप्राय यह है कि समाज का कुछ वर्ग ऐसा है जो पैसे कमाने की होड़ में प्रकृति
ने नियमों के खिलाफ़ जा रहे हैं। जिसकी वजह से मौसम में अप्रत्याशित परिवर्तन हो रहे
हैं। आज बेवक्त की
बरसातें, अत्यधिक गरम और अत्यधिक ठंड, प्राकृतिक आपदाएँ ये सब कुछ धन लोलुपों समूहों के बुरे कर्मों का ही फल है जिससे
पूरी मानव सभ्यता आतंकित है।
5.
कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी’ की ओर इशारा किया है क्योंकि यह युग सूचना
क्रांति का युग है। आज सभी एक दूसरे से आगे
निकनला चाहते हैं। आज के युग में व्यक्ति के पास सब कुछ हो सकता है पर समय नहीं और
कवि ठहरे सीधे साधे व्यक्ति। उन्हें आज की इस पीढ़ी की अंधी दौड़ के बारे में कुछ भी
पता नहीं बस वे तो इतना चाहते हैं कि किसी तरह कोई उनका जाना पहचाना मिल जाए जो उन्हें
उसके घर तक ले जाए।
6.
इस कविता में कवि ने
शहरों की विडंबना की ओर संकेत करते हुए कह रहे हैं कि शहरों में द्रुत गति से होने
वाले निर्माण उसे हर दिन नया चोला पहना डालते हैं। यहाँ एक ही दिन में चीज़ें पुरानी
पड़ जाती हैं। शहर की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में अब ये मनुष्य न रहकर मशीन बन गए हैं जिनमें
कोई संवेदना नहीं। जैसे-जैसे शहरों की जनसंख्या बढ़ती जाती है वैसे-वैसे लोग और भी अकेले
पड़ते जाते हैं।
1 - निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
(क) ‘खुशबू रचनेवाले हाथ’
कैसी परिस्थितियों में तथा कहाँ—कहाँ रहते हैं?
(ख) कविता में कितने तरह के हाथों
की चर्चा हुई है?
(ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’?
(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं,
वहाँ का माहौल कैसा होता है?
(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या
है?
1.
खुशबू रचने वाले हाथ अत्यंत ही
दयनीय अवस्था में गंदी बस्तियों में रहते हैं। इनके घर के इर्द-गिर्द कूड़े-करकट का
ढेर लगा रहता है। चारों ओर बदबू फैली रहती है। अस्वच्छता एवं प्रदूषित वातावरण से इनके
स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
2.
कविता में निम्नलिखित तरह के हाथों की चर्चा हुई है -
Ø उभरी नसों वाले हाथ यानी कि वृद्ध व्यक्ति
Ø घीसे नाखूनों वाले
हाथ यानी कि मजदूरों के हाथ
Ø पीपल के पत्ते जैसे
नए-नए हाथ अर्थात छोटे बच्चों के कोमल हाथ
Ø जूही की डाल जैसे
खुशबूदार हाथ अर्थात नवयुवतियों के सुंदर-सुंदर हाथ
Ø गंदे कटे-पिटे हाथ।
Ø जख्म से फटे हुए
हाथ।
3.
कवि ने यह कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ क्योंकि आज भी अगरबत्ती जैसी प्रतिदिन
और प्रत्येक घर में प्रयोग में लाई जाने वाली
वस्तु का निर्माण लघु उद्योग के रूप में किया जाता है। ये उद्योग काफी मात्रा में आज
भी गंदी बस्तियों में ही होते हैं और इसके निर्माण में हाथों की अहम भूमिका होती है।
।
4.
जहाँ अगरबत्तियाँ बनती
हैं, वहाँ का माहौल बहुत ही भयावह होता है। अस्वच्छता एवं प्रदूषित
वातावरण के कारण निर्माताओं के स्वास्थ्य पर
विपरीत प्रभाव पड़ता है। इन निर्माताओं का निवास स्थान इतनी
गंदगी और कूड़े-करकट की ढेर से घिरा रहता है कि वहाँ जाने से पहले आप और हम जैसे इंसान
नाक-मुँह को कपड़े से ढकेंगे ही ढकेंगे। इसी जगह पर ये अगरबत्तियों के निर्माता टोली
बनाकर रहते हैं। खुद बदबूदार इलाके में रहकर भी ये समाज में सुगंध फैलाने का काम करते
हैं।
5.
इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य यह है कि इस समाज और पूरे संसार को सुंदर
बनाने का कार्य गरीब मजदूर ही करता है पर इन गरीब मजदूरों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने
का ज़िम्मा न तो पूँजीपति वर्ग लेता है और न ही नेतागण। इस कविता के माध्यम से कवि सामाजिक
विषमताओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाकर उनका
शोषण करने वाले वर्ग से यह उम्मीद की जा रही है कि अब वे ये अमानवीय क्रिया का त्याग
कर दें। ऐसा करने पर मजदूरों को आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता मिलेगी और बाल
मजदूरी का भी अंत हो जाएगा। बच्चों को उनका बचपन मिल जाएगा।
2 -निम्नलिखित अंशों की व्याख्या
कीजिए -
(क) यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
(ख) समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ
चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद
पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर
1.
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कह रहे हैं कि शहर में होने वाले द्रुत गति के निर्माण
के कारण सब कुछ एक ही दिन में बदल जाता है। ऐसे में घर तक पहुँचने के पहचान के लिए
तय किया गया संकेत कहीं अदृश्य हो जाता है। अतः
अब स्मृति पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
2.
कवि अपनी इन पंक्तियों में यह कह रहे हैं कि अब तो समय भी बहुत कम है बारिश
भी होने वाली है और अभी तक मैं घर नहीं ढूँढ़ पाया हूँ। अब तो यही उम्मीद है कि कोई
जाना पहचाना बुला ले तो बहुत अच्छा हो। यहाँ कवि के कहने का आशय यह है कि मनुष्य प्रकृति
के नियमों का उलंघन कर रहा है जिसके दुष्परिणाम मौसम में होने वाले बदलाव के रूप में
देखे जा सकते हैं।
2 -निम्नलिखित अंशों की व्याख्या
कीजिए -
(क) (i)
पीपल के पत्ते—से नए—नए हाथ
जूही की डाल—से खुशबूदार हाथ
(ii) दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
(ख) कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है? इसका क्या कारण है?
(ग) कवि ने हाथों के लिए कौन—कौन से विशेषणों का प्रयोग किया है?
क i. प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कह रहे हैं पीपल के पत्ते जैसे नए-नए हाथ अर्थात छोटे बच्चों के कोमल हाथ जूही
की डाल जैसे खुशबूदार हाथ अर्थात नवयुवतियों के सुंदर-सुंदर
हाथ गंदी बस्तियों में अगरबत्तियाँ बनाते हैं।
ii. दुनिया भर की गंदगी के बीच अगरबत्तियों का निर्माण होता है।
इन अगरबत्तियों को उभरी नसों वाले हाथ, घीसे नाखूनों वाले
हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ, जख्म से फटे
हुए हाथ यानी व्यस्क
लोग तो बनाने में लगे ही हुए हैं ये उनकी जीविका का साधन है पर इस कार्य में छोटे-छोटे
बच्चे भी लगे हुए हैं जिनके हाथ पीपल के नए पत्ते जैसे हैं। नवयुवतियों के हाथों को
देखने से ऐसा लगता है मानो ये जूही की कोमल कली हों। अतः खुशबू रचते हैं हाथ।
(ख) कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’
शब्दों का प्रयोग जैसे- नाखूनों, गलियों,
नालों, गंदे हाथों आदि का प्रयोग अधिक किया है
क्योंकि यह किसी एक मजदूर की समस्या नहीं बल्कि जनसंख्या के बहुत बड़े हिस्से की समस्या
है जिसका समाधान अत्यंत आवश्यक है।
(ग) कवि ने हाथों के लिए निन्म्लिखित विशेषणों का प्रयोग
किया है -
v
उभरी नसों वाले
हाथ
v
घीसे नाखूनों वाले
हाथ
v
पीपल के पत्ते
जैसे नए-नए हाथ
v
जूही की डाल जैसे
खुशबूदार हाथ
v
गंदे कटे-पिटे
हाथ।
v
जख्म से फटे हुए
हाथ।
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